....चाहता है.
संजीव 'सलिल'
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हौसले को परखना चाहता है.
परिंदा नभ से लड़ना चाहता है..
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फूल को शूल से शिकवा नहीं है.
पीर पाकर महकना चाहता है..
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उम्र बीती समूची सम्हलने में.
पैर अब खुद बहकना चाहता है..
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शमा ने बहुत रोका पर न माना.
इश्क में शलभ जलना चाहता है..
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दोष क्यों हुस्न को देता जमाना?
वाह सुनकर निखरना चाहता है..
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लाख़ खोजा न पाया शख्स वह जो
अदा कर फ़र्ज़ हक ना चाहता है..
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'सलिल' क्यों आँख खोले?, जगे क्यों कर?
ख्वाब आकर ठिठकना चाहता है..
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
1 टिप्पणी:
आशीर्वाद भाई घर परिवार में मंगल कुशल बहुत खूब बहुत ही जी कर लिखा है पर एक शलभ क्या होता है नहीं समझ आयी
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