अजर अमर अक्षय अजित, अमित अनादि अनंत.
अनहद नादित ॐ ही, नभ भू दिशा दिगंत.
प्रणवाक्षर ओंकार ही, रचता दृष्ट-अदृष्ट.
चित्र चित्त में गुप्त जो, वही सभी का इष्ट.
चित्र गुप्त साकार हो, तभी बनें आकार.
हर आकार-प्रकार से, हो समृद्ध संसार.
कण-कण में बस वह करे, प्राणों का संचार.
हर काया में व्याप्त वह, उस बिन सृष्टि असार.
स्वामी है वह तिमिर का, वह प्रकाश का नाथ.
शान्ति-शोर दोनों वही, सदा सभी के साथ.
कंकर-कंकर में वही शंकर, तन में आत्म.
काया स्थित अंश का, अंशी वह परमात्म.
वह विदेह ही देह का, करता है निर्माण.
देही बन निष्प्राण में, वही फूंकता प्राण.
वह घट है आकाश में, वह घट का आकाश.
करता वह परमात्म ही, सबमें आत्म-प्रकाश.
वह ही विधि-हरि-हर हुआ, वह अनुराग-विराग.
शारद-लक्ष्मी-शक्ति वह, भुक्ति-मुक्ति, भव त्याग.
वही अनामी-सुनामी, जल-थल-नभ में व्याप्त.
रव-कलरव वह मौन भी, वेद वचन वह आप्त.
उससे सब उपजे, हुए सभी उसी में लीन.
वह है, होकर भी नहीं, वही ‘सलिल’ तट मीन.
वही नर्मदा नेह की, वही मोह का पाश.
वह उत्साह-हुलास है, वह नैराश्य हताश.
वह हम सब में बसा है, किसे कहे तू गैर.
महाराष्ट्र क्यों राष्ट्र की, नहीं चाहता खैर?
कौन पराया तू बता?, और सगा है कौन?
राज हुआ नाराज क्यों ख़ुद से?रह अब मौन.
उत्तर-दक्षिण शीश-पग, पूरब-पश्चिम हाथ.
ह्रदय मध्य में ले बसा, सब हों तेरे साथ.
भारत माता कह रही, सबका बन तू मीत.
तज कुरीत, सबको बना अपना, दिल ले जीत.
सच्चा राजा वह करे जो हर दिल पर राज.
‘सलिल’ तभी चरणों झुकें, उसके सारे ताज.
salil.sanjiv@gmail.com / sanjivsalil.blogspot.com
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010
पाती राज के नाम: संजीव 'सलिल'
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