गीतिका
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
तुमने कब चाहा दिल दरके?
हुए दिवाने जब दिल-दर के।
जिन पर हमने किया भरोसा
वे निकले सौदाई जर के..
राज अक्ल का नहीं यहाँ पर
ताज हुए हैं आशिक सर के।
नाम न चाहें काम करें चुप
वे ही जिंदा रहते मर के।
परवाजों को कौन नापता?
मुन्सिफ हैं सौदाई पर के।
चाँद सी सूरत घूँघट बादल
तृप्ति मिले जब आँचल सरके.
'सलिल' दर्द सह लेता हँसकर
सहन न होते अँसुआ ढरके।
**********************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शनिवार, 2 जनवरी 2010
गीतिका: तुमने कब चाहा दिल दरके? --संजीव वर्मा 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
acharya sanjiv 'salil',
gazal,
geetika,
hindi gazal,
muktika,
tevaree

सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
3 टिप्पणियां:
वाणी गीत ...
दर्द सहते हैं मुस्कुरा के ....
सहन नहीं अंसुआ ढरके ....
बहुत ही खूसूरत ग़ज़ल ...आभार ...!!
January 3, 2010 7:15 AM
बहुत सुंदर रचना.
धन्यवाद
बहुत खूबसूरत रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
३ जनवरी २०१०
एक टिप्पणी भेजें