नव गीत:
हर चेहरे में...
संजीव 'सलिल'
हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*
मिल्न-विरह में, नयन-बयन में.
गुण-अवगुण या चाल-चलन में.
कहीं मोह का,
कहीं द्रोह का
संघर्षण है.
हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*
मन की मछली, तन की तितली.
हाथ न आयी, पल में फिसली.
क्षुधा-प्यास का,
श्वास-रास का,
नित तर्पण है.
हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*
चंचल चितवन, सद्गुण-परिमल.
मृदुल-मधुर सुर, आनन मंजुल.
हाव-भाव ये,
ताव-चाव ये
प्रभु-अर्पण है.
हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*
गिरि-सलिलाएँ, काव्य-कथाएँ
कही-अनकही, सुनें-सुनाएँ.
कलरव-गुंजन,
माटी-कंचन
नव दर्पण है.
हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*
बुनते सपने, मन में अपने.
समझ नाते जग के नपने.
जन्म-मरण में,
त्याग-वरण में
संकर्षण है.
हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
गुरुवार, 17 दिसंबर 2009
नव गीत: हर चेहरे में... संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
acharya sanjiv 'salil',
geet,
nav geet,
samyik hindi kavya

सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
अभी अभी इस सुन्दर गीत को पढ कर आयी हूँ धन्यवाद।
आचार्य जी को नमन
Sanjeev Bhai
Badhaiya sundar rachana
एक टिप्पणी भेजें