आओ! तम से लड़ें...
संजीव 'सलिल'
आओ! तम से लड़ें,
उजाला लायें जग में...
***
माटी माता,
कोख दीप है.
मेहनत मुक्ता
कोख सीप है.
गुरु कुम्हार है,
शिष्य कोशिशें-
आशा खून
खौलता रग में.
आओ! रचते रहें
गीत फिर गायें जग में.
आओ! तम से लड़ें,
उजाला लायें जग में...
***
आखर ढाई
पढ़े न अब तक.
अपना-गैर न
भूला अब तक.
इसीलिये तम
रहा घेरता,
काल-चक्र भी
रहा घेरता.
आओ! खिलते रहें
फूल बन, छायें जग में.
आओ! तम से लड़ें,
उजाला लायें जग में...
***
3 टिप्पणियां:
काबिलेतारीफ है प्रस्तुति।.सारी रचनाये आपकी बहुत ही अच्छी है|
एक आशा की किरण जगाती है आपकी रचना.
परमजीत बाली :
बहुत ही बेहतरीन रचना है।बधाई स्वीकारें।
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