मुक्तिका:
आये हो
संजीव 'सलिल'
*
बहुत दिनों में मुझसे मिलने आये हो.
यह जाहिर है तनिक भुला न पाये हो..
मुझे भरोसा था-है, बिछुड़ मिलेंगे हम.
नाहक ही जा दूर व्यर्थ पछताये हो..
खलिश शूल की जो हँसकर सह लेती है.
उसी शाख पर फूल देख मुस्काये हो..
अस्त हुए बिन सूरज कैसे पुनः उगे?
जब समझे तब खुद से खुद शर्माये हो..
पूरी तरह किसी को कब किसने समझा?
समझ रहे यह सोच-सोच भरमाये हो..
ढाई आखर पढ़ बाकी पोथी भूली.
जब तब ही उजली चादर तह पाये हो..
स्नेह-'सलिल' में अवगाहो तो बात बने.
नेह नर्मदा कब से नहीं नहाये हो..
*
आये हो
संजीव 'सलिल'
*
बहुत दिनों में मुझसे मिलने आये हो.
यह जाहिर है तनिक भुला न पाये हो..
मुझे भरोसा था-है, बिछुड़ मिलेंगे हम.
नाहक ही जा दूर व्यर्थ पछताये हो..
खलिश शूल की जो हँसकर सह लेती है.
उसी शाख पर फूल देख मुस्काये हो..
अस्त हुए बिन सूरज कैसे पुनः उगे?
जब समझे तब खुद से खुद शर्माये हो..
पूरी तरह किसी को कब किसने समझा?
समझ रहे यह सोच-सोच भरमाये हो..
ढाई आखर पढ़ बाकी पोथी भूली.
जब तब ही उजली चादर तह पाये हो..
स्नेह-'सलिल' में अवगाहो तो बात बने.
नेह नर्मदा कब से नहीं नहाये हो..
*
Dharmender Sharma 8:30pm May 22
जवाब देंहटाएंBahut hi sundar likha hai Salil ji...
badhayi sweekar karein.