हास्य रचना:
कान बनाम नाक
संजीव 'सलिल'
*
शिक्षक खींचे छात्र के साधिकार जब कान.
कहा नाक ने- 'मानते क्यों अछूत श्रीमान?
क्यों अछूत श्रीमान मानकर नहीं खींचते.
क्यों कानों को लाड़-क्रोध से आप भींचते?'
शिक्षक बोला- "छात्र की अगर खींच लूँ नाक.
कौन करेगा साफ़ यदि बह आयेगी नाक?
बह आयेगी नाक, नाक पर मक्खी बैठे.
ऊँची नाक हुई नीची तो हुए फजीते.''
नाक एक है, कान दो, बहुमत का है राज.
जिसकी संख्या अधिक हो सजे शीश पर साज.
सजे शीश पर साज, सभी संबंध भुनाते.
गधा बाप को और गधे को बाप बताते.
नाक कटे तो प्रतिष्ठा का हो जाता अंत.
कान खिंचे तो सहिष्णुता बढ़ती बनता संत.
कान खिंचे तो ज्ञान पा खुल जाती है आँख.
नाक खिंचे तो आँख संग मुंद जाती है साँस.
कान ज्ञान को बाहर से भीतर ले आते.
नाक बंद अंदर की दम बाहर पहुँचाते.
आँख, गाल न अधर खिंचाई-सुख पा सकते.
'सलिल' खिंचाकर कान तभी नेता हैं हँसते.
Manas Khatri
जवाब देंहटाएं19 मई 10:42
हा..हा..हा..सलिल जी बहुत ही शानदार रचना है..हस्ते हस्ते पेट दर्द हो गया है...शिक्षा जगत पर बड़ा ही सत्रीक व्यंग है..
Manas Khatri
जवाब देंहटाएंManas Khatri 19 मई 10:45
"School में Project अगर कबीरदास पर होए,
Parents-शिक्षक सभी सिर पटक-पटक कर रोएं,
कमर में हाथ डाले घूमें लड़के-लड़की,
‘ढाई आखर प्रेम का जो पढ़ै सो पंडित होए।‘"-मानस खत्री....ये पंक्तियाँ कभी बहुत पहले लिखी थीं..
Manas Khatri
Om Prakash Vyas, commented on your post in Hasya Hindi Poems
जवाब देंहटाएंवाह वाह // डॉ. ओ.पी.व्यास ब्राम्पटन ओंटारियो कनाडा १९/५/२०११//