मुक्तिका:
... निज बाँह में
संजीव 'सलिल'
*
नील नभ को समेटूँ निज बाँह में.
जी रहा हूँ आज तक इस चाह में..
पड़ोसी को कभी काना कर सके.
हुआ अंधा पाक दुर्मति-डाह में..
मंजिलें कब तक रहेंगी दूर यों?
बनेंगी साथी कभी तो राह में..
प्यार की गहराई मिलने में नहीं.
हुआ है अहसास बिछुड़न-आह में..
काट जंगल, खोद पर्वत, पूर सर.
किस तरह सुस्ता सकेंगे छाँह में?
रोज रुसवा हो रहा सच देखकर.
जल रहा टेसू सा हर दिल दाह में..
रो रही है खून के आँसू धरा.
आग बरसी अब के सावन माह में..
काश भिक्षुक मन पले पल भर 'सलिल'
देख पाये सकल दुनिया शाह में..
देख ऊँचाई न बौराओ 'सलिल
..दूब सम जम जाओ गहरी थाह में
***
Acharya Sanjiv 'salil
http://divyanarmada.blogspot.com
... निज बाँह में
संजीव 'सलिल'
*
नील नभ को समेटूँ निज बाँह में.
जी रहा हूँ आज तक इस चाह में..
पड़ोसी को कभी काना कर सके.
हुआ अंधा पाक दुर्मति-डाह में..
मंजिलें कब तक रहेंगी दूर यों?
बनेंगी साथी कभी तो राह में..
प्यार की गहराई मिलने में नहीं.
हुआ है अहसास बिछुड़न-आह में..
काट जंगल, खोद पर्वत, पूर सर.
किस तरह सुस्ता सकेंगे छाँह में?
रोज रुसवा हो रहा सच देखकर.
जल रहा टेसू सा हर दिल दाह में..
रो रही है खून के आँसू धरा.
आग बरसी अब के सावन माह में..
काश भिक्षुक मन पले पल भर 'सलिल'
देख पाये सकल दुनिया शाह में..
देख ऊँचाई न बौराओ 'सलिल
..दूब सम जम जाओ गहरी थाह में
***
Acharya Sanjiv 'salil
http://divyanarmada.blogspot.com
sundr sadhuvad
जवाब देंहटाएंVed Prakash Sharma 9:43pm May 22
sn Sharma ✆ ekavita
जवाब देंहटाएंआ० सलिल जी,
आपकी लेखनी को नमन |
मन कमल रहता प्रफुल्लित
सलिल स्नेहिल अंक में
अन्यथा जाया हुआ है
मोह-माया पंक में
कमल
achal verma ekavita
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी .
"पड़ोसी को कभी काना कर सके.
हुआ अंधा पाक दुर्मति-डाह में.."
क्योंकि
नाम तो है पाक, पर नापाक हैं सब काम
ख़ाक में मिलवा दी अपनी दोस्ती का नाम
जिसके बलपर कूदता रहता था कलतक,
आज, उसने ही दिखला दिया कितना है धोकेबाज|
हाथ पकड़ा चीन का करने को हमको तंग
अपनी ताकत से कभी ना जीत पाया जंग
सके पीछे भी लगा दी पूँछ में है आग
अब उसे पहचान दुनिया, जाग दुनिया जाग ||
एक दिन नारा दिया था "हसके लिया है पाकिस्तान
दूर है वो दिन नहीं हम लड़के लेंगे हिन्दुस्तान"
आज ओंधे मुंह गिरा है, चल कपट की राह,
छिपा रक्खा था बम, हिंसा थी जिसकी राह |
अब तो खतरा है वही बम फटे, इनके घर
करके अपनों की ही दुर्गति, पिटें अपना सर
सूझ ना पाए इन अंधों को सच्ची राह
करके छोड़ेंगे ये अब इंसानियत को तबाह ||