दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु
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बुधवार, 20 जून 2018
कुंडलिया सलिला
केर-बेर के संग सम, महबूबा-महबूब।
स्वार्थ साधने मिल गए, राजनीति में डूब।।
राजनीति में डूब, न उनको मिला किनारा।
गए शीघ्र ही ऊब, हो गया दिल-बँटवारा।।
साथ-साथ या दूर, विषम न हों रह साथ सम।
महबूबा-महबूब, केर-बेर के संग सम।।
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