श्री श्री चिंतन: 3
आदतें
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30.7.1995, ब्रुकफील्ड, कनेक्टीकट, अमेरिका
आदत हो या वासना, जकड़ें देतीं कष्ट।
तुम छोड़ो वे पकड़कर, करती सदा अनिष्ट।।
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जीवन चाहे मुक्त हो, किंतु न जाने राह।
शत जन्मों तक भटकती, आत्मा पाले चाह।।
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छुटकारा दें आदतें, करो सुदृढ़ संकल्प।
जीवन शक्ति दिशा गहे, संयम का न विकल्प।।
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फिक्र व्यर्थ है लतों की, वापिस लेती घेर।
आत्मग्लानि दोषी बना, करे हौसला ढेर।।
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लत छोड़ो; संयम रखो, मिले रोग से मुक्ति।
संयम अति को रोकना, सुख से हो संयुक्ति।।
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समय-जगह का ध्यान रख, समयबद्ध संकल्प।
करो; निभाकर सफल हो, शंका रखो न अल्प।।
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आजीवन संकल्प मत, करो- न होता पूर्ण।
टूटे याद संकल्प फिर, करो- न रहे अपूर्ण।।
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अल्प समय की वृद्धि कर, करना नित्य निभाव।
बंधन में लत बाँधकर, जय लो बना स्वभाव।।
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लत न तज सके तो तुम्हें, हो तकलीफ अपार।
पीड़ाएँ लत छुड़ा दें, साधक वक् सुधार।।
13.4.2018
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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