नवगीत:
नवगीतात्मक खंडकाव्य रच
महाकाव्य की ओर चला मैं
.
कैसा मुखड़ा?
लगता दुखड़ा
कवि-नेता ज्यों
असफल उखड़ा
दीर्घ अंतरा क्लिष्ट शब्द रच
अपनी जय खुद कह जाता बच
बहुत हुआ सम्भाव्य मित्रवर!
असम्भाव्य की ओर चला मैं
.
मिथक-बिम्ब दूँ
कई विरलतम
निकल समझने
में जाए दम
कई-कई पृष्ठों की नवता
भारी भरकम संग्रह बनता
लिखूं नहीं परिभाष्य अन्य सा
अपरिभाष्य की ओर चला मैं
.
नवगीतों का
मठाधीश हूँ
अपने मुँह मिट्ठू
कपीश हूँ
वहं अहं का पाल लिया है
दोष थोपना जान लिया है
मानक मान्य न जँचते मुझको
तज अमान्य की ओर चला मैं
.
नवगीतात्मक खंडकाव्य रच
महाकाव्य की ओर चला मैं
.
कैसा मुखड़ा?
लगता दुखड़ा
कवि-नेता ज्यों
असफल उखड़ा
दीर्घ अंतरा क्लिष्ट शब्द रच
अपनी जय खुद कह जाता बच
बहुत हुआ सम्भाव्य मित्रवर!
असम्भाव्य की ओर चला मैं
.
मिथक-बिम्ब दूँ
कई विरलतम
निकल समझने
में जाए दम
कई-कई पृष्ठों की नवता
भारी भरकम संग्रह बनता
लिखूं नहीं परिभाष्य अन्य सा
अपरिभाष्य की ओर चला मैं
.
नवगीतों का
मठाधीश हूँ
अपने मुँह मिट्ठू
कपीश हूँ
वहं अहं का पाल लिया है
दोष थोपना जान लिया है
मानक मान्य न जँचते मुझको
तज अमान्य की ओर चला मैं
.
vijay3@comcast.net [ekavita]
जवाब देंहटाएंनवगीत अच्छा लगा। बधाई।
विजय निकोर
Om Prakash Tiwari
जवाब देंहटाएंवहं अहं का पाल लिया है .......... वाह क्या बात कही है। बधाई।
Shivji Srivastava
जवाब देंहटाएंसुंदर व्यंजना
कल्पना रामानी
जवाब देंहटाएंवाह! वाह बहुत बढ़िया