रविवार, 14 दिसंबर 2014

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चित्र पर कविता:

१. नवगीत: संजीव 



निज छवि हेरूँ 
तुझको पाऊँ 
मन मंदिर में कौन छिपा है?
गहन तिमिर में कौन दिपा है?
मौन बैठकर 
किसको गाऊँ?
हुई अभिन्न कहाँ कब किससे?
गूँज रहे हैं किसके किस्से??
कौन जानता 
किसको ध्याऊँ?
कौन बसा मन में अनजाने?
बरबस पड़ते नयन चुराने? 
उसका भी मन 
चैन चुराऊँ?

२. दोहा - राकेश खण्डेलवाल

कही-सुनी, रूठी- मनी, यों साधें हर शाम

खुद तो वे राधा हुई, परछाईं घनश्याम

Rakesh Khandelwal rakesh518@yahoo.com

३. कविता - घनश्याम गुप्ता 



राधे
, मैं प्रतिबिम्ब तुम्हारा
मेरा तो अस्तित्व तुम्हीं से
तुम ध्वनि हो, तो मैं प्रतिध्वनि हूं
शब्द अर्थ से, जल तरंग से
जैसे भिन्न नहीं होता है
वैसे ही राधे, मैं तुमसे
जुड़ा हुआ हूं जुड़ा रहूंगा
जब तक तुम हो, बना रहूंगा
राधे, मैं प्रतिबिम्ब तुम्हारा
 
शब्द अर्थ से, जल तरंग से जैसे भिन्न नहीं होता है
 --  यह तुलसीदास के इस दोहे की प्रथम पंक्ति का अनुकरण मात्र है:
 
गिरा अरथ जल बीचि सम कहियत भिन्न न भिन्न
बंदउँ सीताराम पद जिन्हहिं परम प्रिय खिन्न

४. -- महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’ 

मेरा क्या केवल निमित्त हूँ

मेरा क्या केवल निमित्त हूँ
तुम ही कर्ता हो गति-कृति के
अगर भृकुटि तन जाए तुम्हारी
पल में एक प्रलय आ जाए
अभय दान मिल जाए तुम्हारा  
सतत एक शांति छा जाए
  
मेरा क्या केवल निमित्त हूँ
ज्यों लुहार की एक धौंकनी
कुछ अस्तित्व नहीं है जिसका
लेकिन उसमें साँस तुम्हारी
जीवन को रोपित करती है
जीने को प्रेरित करती है 

मेरा क्या केवल निमित्त हूँ
मेरा क्या होनाना होना
मुझसे कण तो और बहुत हैं
लेकिन कण-कण में छवि केवल
एक तुम्हारी ही भासित है
सदा रही हैसदा रहेगी.

3 टिप्‍पणियां:


  1. vijay3@comcast.net [ekavita]

    अति सुन्दर। बधाई।

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  2. Surender Bhutani suren84in@yahoo.com [ekavita]


    सलिल जी,
    इस गीत को कुंदन लाल सहगल की शैली में भी गाया जा सकता है
    उनके गीत के बोल हैं
    " निस दिन बरसत नैन हमारे " फिल्म सूरदास
    सादर,
    सुरेन्द्र

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  3. दादा
    वन्दे
    आपकी पारखी नज़र को प्रणाम। दोनों गीतों का पदभार समान है, इस लिए उन्हें एक ही लय में गाया जा सकेगा। कोई गायक साथी आपकी यह मनोकामना पूरी कर सके तो आनंद आएगा।

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