शनिवार, 13 दिसंबर 2014

navgeet:

नवगीत: 
लेटा हूँ
मखमल गादी पर
लेकिन 
नींद नहीं आती है 
.
इस करवट में पड़े दिखाई 
कमसिन बर्तनवाली बाई 
देह सांवरी नयन कटीले 
अभी न हो पाई कुड़माई 
मलते-मलते बर्तन 
खनके चूड़ी 
जाने क्या गाती है
मुझ जैसे 
लक्ष्मी पुत्र को 
बना भिखारी वह जाती है 

उस करवट ने साफ़-सफाई 
करनेवाली छवि दिखलाई 
आहा! उलझी लट नागिन सी 
नर्तित कटि ने नींद उड़ाई 
कर ने झाड़ू जरा उठाई 
धक-धक धड़कन 
बढ़ जाती है
मुझ अफसर को 
भुला अफसरी 
अपना दास बना जाती है 

चित सोया क्यों नींद उड़ाई?
ओ पाकीज़ा! तू क्यों आई?
राधे-राधे रास रचाने 
प्रवचन में लीला करवाई 
करदे अर्पित 
सब कुछ 
गुरु को 
जो 
वह शिष्या 
मन भाती है 

हुआ परेशां नींद गँवाई 
जहँ बैठूं तहँ थी मुस्काई 
मलिन भिखारिन, युवा, किशोरी 
कवयित्री, नेत्री तरुणाई 
संसद में 
चलभाष देखकर 
आत्मा तृप्त न हो पाती है 
मुझ नेता को 
भुला सियासत 
गले लगाना सिखलाती है 
.

7 टिप्‍पणियां:

  1. Shanker Madhuker

    " इस करवट में पड़ी (पड़े) दिखाई
    कमसिन बर्तनवाली बाई "
    ने दिल छू लिया। पूरी कविता श्लाघनीय। धन्यवाद।

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  2. Veena Vij vij.veena@gmail.com

    हल्का- फुल्का गीत अच्छा लगा । कम से कम चेहरे पर मुस्कान तो आई ।
    बधाई,
    वीणा विज उदित

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  3. Om Prakash Tiwari omtiwari24@gmail.com

    आदरणीय आचार्य जी
    बहुत सुन्दर ।
    बस थोड़ा सावधानी बरतियेगा। घर से दूर रखिएगा इस नवगीत को।
    सादर
    ओमप्रकाश तिवारी

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  4. 'Dr.M.C. Gupta' mcgupta44@gmail.com

    सलिल जी,

    बहुत नवीन और सुन्दर--

    क्या कहिए कविवर तुमने तो कच्चा चिट्ठा खोल दिया है
    मिसरी से मीठे शब्दों में ज्यों रहस्य-विष घोल दिया है
    बर्तन और सफ़ाई वाली मालिन की तो बात बताई
    घर वाली की बातों को लेकिन क्योंकर कर गोल दिया है?

    --ख़लिश

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