गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

janak muktak

जनक मुक्तक 

मिल त्यौहार मनाइ 
गीत ख़ुशी के गाइ 
साफ़-सफाई सब जगह 
पहले आप कराइए 
*
प्रिया रात के माथ पर,
बेंदा जैसा चाँद धर.  
कालदेवता झूमता-
थाम बाँह में चूमता। 
*
गये मुकदमा लगाने
ऋद्धि-सिद्धि हरि कोर्ट में  
माँगी फीस वकील ने  
अकल आ गयी ठिकाने 
*
नयन न नम कर नतमुखे!
देख न मुझको गिलाकर 
जो मन चाहे, दिलाऊं-
समझा कटनी जेब है.
*
हुआ सम्मिलन दियों का 
पर न हो सका दिलों का 
तेल न निकला तिलों का
धुंआ धुंआ दिलजलों का 

3 टिप्‍पणियां:


  1. Gopal Baghel Madhu
    मुझे
    बहुत सुन्दर कविता है आपकी !

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  2. Gopal Baghel Madhu
    मुझे
    बहुत सुन्दर कविता है आपकी !

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  3. Gopal Baghel Madhu
    मुझे
    बहुत सुन्दर कविता है आपकी !

    जवाब देंहटाएं