गुरुवार, 15 अगस्त 2013

doha on buildings -SANJIV

दोहा सलिला :
भवन माहात्म्य : २
संजीव
*
[इंस्टिट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स, लोकल सेंटर जबलपुर द्वारा गगनचुम्बी भवन (हाई राइज  बिल्डिंग) पर १०-११ अगस्त २०१३ को आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी  की स्मारिका 'भवनांकन' में प्रकाशित कुछ दोहे।]
*
[इंस्टिट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स, लोकल सेंटर जबलपुर द्वारा गगनचुम्बी भवन (हाई राइज बिल्डिंग) पर १०-११ अगस्त २०१३ को आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी  की स्मारिका में प्रकाशित कुछ दोहे।]
*
भवन मनुज की सभ्यता, ईश्वर का वरदान।
रहना चाहें भवन में, भू पर आ भगवान।१।
*
भवन बिना हो जिंदगी, आवारा-असहाय।
अपने सपने ज्यों 'सलिल', हों अनाथ-निरुपाय।२।
*
मन से मन जोड़े भवन, दो हों मिलकर एक।
सब सपने साकार हों, खुशियाँ मिलें अनेक।३।
*
भवन बचाते ज़िन्दगी, सड़क जोड़ती देश।
पुल बिछुडों को मिलाते, तरु दें वायु हमेश।४।
*
राष्ट्रीय संपत्ति पुल, सड़क इमारत वृक्ष।
बना करें रक्षा सदा, अभियंतागण दक्ष।५।
*
भवन सड़क पुल रच बना, आदम जब इंसान।
करें देव-दानव तभी, मानव का गुणगान।६।
*
कंकर को शंकर करें, अभियंता दिन-रात।
तभी तिमिर का अंत हो, उगे नवल प्रभात७।
*
भवन सड़क पुल से बने, देश सुखी संपन्न।
भवन सेतु पथ के बिना, होता देश विपन्न।८।
*
इमारतों की सुदृढ़ता, फूंके उनमें जान।
देश सुखी-संपन्न हो, बढ़े विश्व में शान।९।
*
भारत का नव तीर्थ है, हर सुदृढ़ निर्माण।
स्वेद परिश्रम फूँकता, निर्माणों में प्राण।१०।
*
अभियंता तकनीक से, करते नव निर्माण।
होता है जीवंत तब, बिना प्राण पाषाण।११।
*
भवन सड़क पुल ही रखें, राष्ट्र-प्रगति की नींव।
सेतु बना- तब पा सके, सीता करुणासींव।१२।
*
करे इमारत को सुदृढ़, शिल्प-ज्ञान-तकनीक।
लगन-परिश्रम से बने, बीहड़ में भी लीक।१३।
*
करें कल्पना शून्य में, पहले फिर साकार।
आंकें रूप अरूप में, यंत्री दे आकार।१४।
*
सिर्फ लक्ष्य पर ही रखें, हर पल अपनी दृष्टि।
अभियंता-मजदूर मिल, रचें नयी नित सृष्टि।१५।
*
सडक देश की धड़कनें, भवन ह्रदय पुल पैर।
वृक्ष श्वास-प्रश्वास दें, कर जीवन निर्वैर।१६।
*
भवन सेतु पथ से मिले, जीवन में सुख-चैन।
इनकी रक्षा कीजिए, सब मिलकर दिन-रैन।१७।
*
काँच न तोड़ें भवन के, मत खुरचें दीवार।
याद रखें हैं भवन ही, जीवन के आगार।१८।
*
भवन न गन्दा हो 'सलिल', सब मिल रखें खयाल।
कचरा तुरत हटाइए, गर दे कोई डाल।१९।
*
भवनों के चहुँ और हों, ऊँची वृक्ष-कतार।
शुद्ध वायु आरोग्य दे, पायें ख़ुशी अपार।२०।
*
कंकर से शंकर गढ़े, शिल्प ज्ञान तकनीक।
भवन गगनचुम्बी बनें, गढ़ सुखप्रद नव लीक।२१।
*
वहीं गढ़ें अट्टालिका जहाँ भूमि मजबूत।
जन-जीवन हो सुरक्षित, खुशियाँ मिलें अकूत।२२।
*
ऊँचे भवनों में रखें, ऊँचा 'सलिल' चरित्र।
रहें प्रकृति के मित्र बन, जीवन रहे पवित्र।२३।
*
रूपांकन हो भवन का, प्रकृति के अनुसार।
अनुकूलन हो ताप का, मौसम के अनुसार।२४।
*
वायु-प्रवाह बना रहे, ऊर्जा पायें प्राण।
भवन-वास्तु शुभ कर सके, मानव को सम्प्राण।२५।
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

9 टिप्‍पणियां:



  1. Dear Salil ji
    Aap ke geet ne prabhaavit kar yeh likhva diya hai
    Yadi buraa na maane to prastut hai:

    Sadak setu hain ragen desh kee
    In mein na ho avrodh
    Chale to jeevan, ruke to mrityu
    Abhiyanta karen yeh bodh

    Maaya ke vash khot mile to
    Ruk jayengi sadke
    Apang ang ho jaayenge
    Kaise dil desh kaa dhadke

    Sabhi abhiyanta gano se hai
    Karbaddh hamaari vinati
    Desh ke doctor aap hain
    Chhodo maaya ki ginati.


    Dr Pradeep Sharma Insaan MD,FAMS
    Professor, RP Centre
    AIIMS New Delhi,INDIA

    जवाब देंहटाएं
  2. अभियंता यह चाहता, सुदृढ़ रहे निर्माण
    पत्रकार-नेता किये, हैं संकट में प्राण
    अफसर रिश्वत चाहते, अगर न दो तो बैर
    गुंडे ठेकेदार हैं, नहीं जान की खैर
    यात्रा भत्ता के बिना, काम देखता रोज
    सर्वाधिक क्यों मृत्यु दर, हो इसकी भी खोज
    नेता-चमचे हो गए, जब से ठेकेदार
    सड़क-भवन का हो गया, सचमुच बंटाढार
    हरेक चैक पर कमीशन, कोषालय की मांग
    लेखा अधिकारी रहा, नित्य खींचता टांग
    अभियन्ता-अभिमन्यु को, कौन बचाए आज
    कृष्ण न कोइ मिल रहा, संकट में है लाज

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर, सलिल जी। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. achal verma

    भवनों से भी भव्य है कीर्ति यह श्रीमान
    ज्ञान बढा हम सभी का हो सबका कल्याण ॥

    जवाब देंहटाएं
  5. Kusum Vir via yahoogroups.com

    आदरणीय आचार्य जी,
    भवन, सड़क और पुल से देश को सुखी संपन्न बनाने की संकल्पना सुखद लगी l
    इसके साथ ही यदि,देश के लोगों का चरित्र निर्माण भी हो सके तो सोने में सुहागा हो जाए l
    अशेष सराहना के साथ,
    सादर,
    कुसुम वीर

    जवाब देंहटाएं
  6. munshiravi@gmail.com

    मेरे अपने कार्यक्षेत्र की इतनी प्रशंसा पढ़ कर ह्रदय गदगद नववहो ग्यारह, आदरणीय सलिलजी का बहुत बरहुत धन्यरवाद. (मै भी एक सिविल इंजीनियर हूँ) चाहे शिक्षक ही सही।

    जवाब देंहटाएं
  7. Pranava Bharti via yahoogroups.com

    आ. सलिल जी
    सदा की भांति सुंदर ,प्रभावशाली दोहे !
    सादर
    प्रणव

    जवाब देंहटाएं
  8. भवन सड़क पुल गर न हों, तो कैसे हो मेल?
    रहें चलें अंतर मिटे, मिल कर पायें खेल।।
    *
    भवन सड़क पुल माध्यम, जिनसे हो व्यापार।
    देश सुखी-संपन्न हो, खुशियाँ मिलें हज़ार।।
    *
    रोटी कपड़ा मकां बिन, जीवन हो सुख हीन।
    सड़क-सेतु बिन क्षेत्र हैं, ज्यों मानव मतिहीन।।
    *
    भवन तजा हर ली गयीं, सीता- विधना वाम।
    सेतु बना पुनि पा सके, सीता को श्री राम।।
    *

    जवाब देंहटाएं
  9. achal verma

    आ. आचार्य जी,
    ये आपकी कविता के ऊपर कोई व्यंग नहीं, वरन वस्तु स्थिति की एक झलक है जो इस रचना के पढने से उत्पन्न हुई :
    अतएव इसे अन्यथा न लें आप:-

    पनपी सभ्यता अभियान्त्रिकों के करते जरूर
    पर है यह भी सच संस्कृति हुई बहुत मजबूर
    ऊँचे महल हुए लेकिन झॊपडियाँ बढती जाएँ
    बढती आबादी पर मानव जो न लगाम लगावे ॥

    भवन बिना भगवान सदा ही रहता आया है
    उसके लिए हरओर एकसी धूप या छाया है
    उसे बाँटने की कोशिश कर थकगई माया है
    लेकिन है ये भी सच कोई देख न पाया है॥......अचल......

    जवाब देंहटाएं