गुरुवार, 15 अगस्त 2013

गीत
आज पंद्रह अगस्त है
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उठो उठो श्रीमान
आज पंद्रह अगस्त है ।                       


सरसठ की हो गई
आज बूढ़ी आज़ादी,
सोई चद्दर तान
दिखे पूरी आबादी ;


सीमाओं पर लगातार
मिलती शिकस्त है ।

अंदर-बाहर सभी तरफ
ख़तरा ही ख़तरा,
पानी सा हो गया
लहू का कतरा-कतरा

लालकिले वाला वक्ता
भी दिखे पस्त है ।

लूट रहे वो जिन्हें
आपने चुनकर भेजा,
देख देश की दशा
फटा जा रहा कलेजा ;

नौजवान अपनी दुनिया में
हुआ मस्त है ।

भले रुलाए प्याज
खून के हमको आँसू,
लिखे जा रहे उन्नति के
नारे नित धाँसू ;

कहाँ शिकायत करें
हवा भी हुई भ्रष्ट है।

- ओमप्रकाश तिवारी

(15 अगस्त, 2013


--
Om Prakash Tiwari
Chief of Mumbai Bureau
Dainik Jagran
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 Mumbai- 400021

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9 टिप्‍पणियां:

  1. आ. ओम जी,
    चित्रण तो यह सत्य भले कडुवा सुनने में
    देश रो रहा आज लगे कडुवा गुनने में
    लेकिन कौन नकार सकेगा यह सच्चाई
    हर नेता बिन डरे कर रहा खूब कमाई
    हे प्रभु अब तुमको भारत में आना होगा
    गीता का वह गीत भी अब दुहराना होगा
    सोई जनता जगे फ़ूँक दो शंख दुबारा
    तुमने तो हर बार देश को दिया सहारा
    कोई और उपाय नहीं बच रहा वहाँ पर
    मरते वीर जवान रोज ही अब सीमा पर
    दुश्मन हैं हँस रहे नाव में आग लगा कर
    नेता हैं दिग्भ्रान्त आदर में शीश झुकाकर
    आजादी क्या फ़िर भी अपनी बच पायेगी
    यही रहा जो हाल तो जनता चिल्लायेगी
    सुनने वाले सोते तेल कानों में डाले
    भले आज सब मिलके कितना भी चिल्लालें ॥...अचल.....

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  2. आदरणीय ओम जी,

    अद्भुत । सभी पद एक से एक बढ़कर अच्छे और दुरुस्त हैं फिर भी निम्न अत्यंत प्रभावशाली रहे । बधाई हो ।

    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

    लूट रहे वो जिन्हें
    आपने चुनकर भेजा,
    देख देश की दशा
    फटा जा रहा कलेजा ;

    भले रुलाए प्याज
    खून के हमको आँसू,
    लिखे जा रहे उन्नति के
    नारे नित धाँसू ;

    --
    Web:http://bikhreswar.blogspot.com/

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  3. Om Prakash Tiwari

    आदरणीय अचल जी,
    गजब है आपकी त्वरित प्रतिक्रिया। धन्य हैं आप।
    सादर
    ओमप्रकाश तिवारी

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  4. Shriprakash Shukla

    आदरणीय अचल जी,

    सही कवि की पहचान यही है कि रचना स्वाभविक रूप से त्वरित मुखरित हो पड़े न तो भाव ढूंढना पड़े न ही शब्द चुनने पड़ें ।
    आपकी यह नैसर्गिग क्षमता एवम प्रतिभा पहले ही दिन से परिलक्षित हो गयी थी । बस निश्चिंतता से लिखते रहिये । पुराने चावल मीठे होते ही जाते हैं । बधाई

    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

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  5. Amitabh Tripathi

    आदरणीय ओम प्रकाश जी,
    अच्छा नवगीत और उस पर अचल जी की प्रतिक्रिया भी उतनी ही जोर दार है।
    दोनों लोगों को बधाई एवं आभार!
    सादर
    अमित

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  6. Dr.M.C. Gupta via yahoogroups.com

    बहुत सुंदर, ओम प्रकाश जी.

    --ख़लिश

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  7. sn Sharma via yahoogroups.com

    आ० ओम जी , अचल जी श्रीप्रकाश जी ,
    उत्तम तंज है , बधाई
    इस भीषण मंहगाई में
    मेरी लुगाई रोती है
    पहले प्याज काटने पर
    अब खरीदने पर रोती है
    कमल

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  8. Kusum Vir via yahoogroups.com

    // लूट रहे वो जिन्हें

    आपने चुनकर भेजा,
    देख देश की दशा
    फटा जा रहा कलेजा ;

    नौजवान अपनी दुनिया में
    हुआ मस्त है । //

    आदरणीय तिवारी जी,
    कटु सत्य पर आधारित अति सामयिक, सटीक और प्रभावी रचना l
    बहुत बधाई और सराहना l
    सादर,
    कुसुम वीर

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  9. Kusum Vir via yahoogroups.com

    वाह ! बहुत खूब आदरणीय अचल जी l
    सादर,
    कुसुम वीर

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