फसल
दीप्ति शर्मा
*
वर्षों पहले बोयी और
आँसूओं से सींची फसल
अब बड़ी हो गयी है
नहीं जानती मैं!!
कैसे काट पाऊँगी उसे
वो तो डटकर खड़ी हो गयी है
आज सबसे बड़ी हो गयी है
कुछ गुरूर है उसको
मुझे झकझोर देने का
मेरे सपनों को तोड़ देने का
अपने अहं से इतरा और
गुनगुना रही वो
अब खड़ी हो गयी है
आज सबसे बड़ी हो गयी है ।
वो पक जायेगी एक दिन
और बालियाँ भी आयेंगी
फिर भी क्या वो मुझे
इसी तरह चिढायेगी
और मुस्कुराकर इठलायेगी
या हालातों से टूट जायेगी
पर जानती हूँ एक ना एक दिन
वो सूख जायेगी
पर खुद ब खुद
*******
प्रति रचना:
फसल
संजीव 'सलिल'
*
वर्षों पहले
आँसुओं ने बोई
संवेदना की फसल
अंकुरित, पल्लवित,
पुष्पित हुई।
मनाता हूँ देव से
हर विपदाग्रस्त के साथ
संवेदना बनकर
फलित होती रहे।
*
कुछ कमजोर पलों में
आशा के कुंठित होनेपर
आँसुओं ने बोई
निराशा की फसल।
मनाता हूँ देव से
पाँव के छालों को
हौसला बख्शे,
राह के काँटों से
गले मिल हंस लें।।
*
sn Sharma द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआ0 आचार्य जी,
दीप-पर्व के गीत का प्रतेक बंद सराहनीय है। विशेष-
जानकी जान की खैर हो,
वनगमन-वनगमन ही न हो।
चीर को चीर पायें ना कर-
पीर बेपीर गायन न हो।।
सादर
कमल
deepti gupta द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंशानदार !
सादर,
दीप्ति
माननीय कमल जी एवं दीप्ति जी
जवाब देंहटाएंआपकी कद्रदानी का शुक्रिया।