सोमवार, 3 सितंबर 2012

हास्य सलिला : गधा-वार्ता संजीव 'सलिल'

हास्य सलिला :

गधा-वार्ता

संजीव 'सलिल'

*



एक गधा दूजे से बोला: 'मालिक जुल्मी बहुत मारता।'
दूजा बोला: 'क्यों सहता तू?, क्यों न रात छिप दूर भागता?'
पहला बोला: 'मन करता पर उजले कल की सोच रुक गया।'
दूजा पूछे:' क्या अच्छा है जिसे सोच तू आप झुक गया?'
पहला: 'कमसिन सुन्दर बेटी को मालिक ने मारा था चांटा।
ब्याह गधे से दूंगा तुझको' कहा, जोर से फिर था डांटा।
ठहरा हूँ यह सपना पाले, मालिक अपनी बात निभाए।
बने वह परी मेरी बीबी, मेरी भी किस्मत जग जाए।

***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
94251 83244 / 0761 2411131
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



9 टिप्‍पणियां:

  1. vijay ✆ द्वारा yahoogroups.comसोमवार, सितंबर 03, 2012 6:58:00 pm

    vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    प्रिय संजीव जी,

    वाह, वाह, क्या कहने आपके हास्य के !

    बधाई ।

    सस्नेह,

    विजय

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  2. deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara

    =D> applause =D> applause =D> applause

    बहुत बढ़िया हास्य संजीव जी! बेचारा गधा(गधे से ब्याह दूंगा) मुहावरा न समझने के कारण परी से ब्याह के चक्कर में मारा खाता रुका हुआ है- क्या बात है...! यह कविता चुटकुले से भी ज्यादा हँसाने वाली है!

    साधुवाद!
    सादर,
    दीप्ति
    एक 'निखालिस सच्चा' चुटकुला हम भी लिखकर भेजने वाले हैं किसी दिन!

    जवाब देंहटाएं
  3. - kiran5690472@yahoo.co.in

    Aa. Salil Ji,

    Chutkala to pehle sun chuki thi lekin aapne bahut sundar prastutikaran kiya aur main apni hansi nahi rok payi :) :) :)

    Aap ki lekhni ko salam !!
    Sent on my BlackBerry® from Vodafone

    जवाब देंहटाएं
  4. आत्मीय किरण जी!
    वन्दे मातरम.
    उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद. हास्य मेरी मूल विधा नहीं है. परिचित प्रसंगों का काव्य रूपांतरण बछ्कों को हंसने के साथ-साथ काव्य विधा से भी जोड़ता है. यही उद्देश्य है इन प्रयासों के पीछे... गंभीर लेखन या चर्चाजनित तनाव भी समाप्त होता ही है...

    जवाब देंहटाएं
  5. salil.sanjiv@gmail.com

    kavyadhara
    आत्मीय किरण जी!
    वन्दे मातरम.
    उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद. हास्य मेरी मूल विधा नहीं है. परिचित प्रसंगों का काव्य रूपांतरण बछ्कों को हंसने के साथ-साथ काव्य विधा से भी जोड़ता है. यही उद्देश्य है इन प्रयासों के पीछे... गंभीर लेखन या चर्चाजनित तनाव भी समाप्त होता ही है...

    जवाब देंहटाएं
  6. Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com
    kavyadhara


    क्या बात है सलिल जी......बहुत बढिया|
    लगता है मंच पर चुतुलों का दौर शुरू हो गया है|
    सुंदर
    प्रणव

    जवाब देंहटाएं
  7. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.comशनिवार, सितंबर 08, 2012 11:12:00 am

    sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    अरे भाई हम किस गधे से कम हैं?
    संसद में भी गधों कि टोली हमीं लोग पहुंचाते हैं
    और बाद में ठगे ठगे से खड़े हुए गरियाते हैं
    सोनी जी का कृपापात्र होने का दाँव चलाते हैं
    मंत्री बनने को गधे सभी इसी भाँति बतियाते हैं

    कमल

    जवाब देंहटाएं
  8. Pranava Bharti ✆ yahoogroups.com
    kavyadhara


    sorry,by mistake sp.has become wrong.

    चुटकुलों का दौर शुरू हो गया है,दादा ने भ़ी मंत्रियों पर तंज़ कस ही दिया|
    सादर
    प्रणव

    जवाब देंहटाएं
  9. - sosimadhu@gmail.com

    मेरा तो हँसते हँसते पेट दुःख गया । बातों बातों में ही कितनी बात निकल आती है । बात निकली तो बहु------------त दू-----------र तलक जायेगी --------- गधे तक ।
    एक मजेदार बात याद आ गयी
    मेरे छोटे भाई की शादी थी । रस्म- रिवाजों के हिसाब से उसकी ससुराल जो वहीं उसी शहर में थी में हम सब का खाना था । भाई नया नया डाक्टर बना था , एवं व्यस्त रहता था और वो सदा से , झट- पट, खडा- खडा, ही खाना खाता था । नयी ससुराल खूब खातिर हुयी हम सबने गरमा गरम कचौरी व खीर आदि उड़ाई , परन्तु मुख्य अथिति गायब , बिचारी उसकी सास गैस बंद करके इन्तजार करने लगीं कि कब डाक्टर दामाद आये और कब वो उसे गर्मागरम भोजन परोंसे । वो सब बैठक में हमारे साथ बैठे थे । गपशप चल रही थी कि अचानक उनका नौकर हडबडाते हुए आया और बोला
    " डाक्टर साहब खाना खा रहें हैं । "
    सासुजी लपट झपट भागीं साडी पल्लू सँभालते हुए तुरंत रसोई की तरफ लपकी। आदत अनुसार उनके आने से पहले ही उसने खाने की मेज पर रखे कैसरौल को खोला और जो मिला खा लिया । सासुजी ने उन्हें कैसरौल से रोटी खाते देख कर , हाथ फैला कर रोकते हुए बोलीं
    ," ये तो कुत्ते की रोटी थीं "
    भाई जिसे हम घर में प्यार से पप्पू कहते थे बोल उठे
    , '' हाँ तो ठीक तो है जिसकी थी उसने खा ली "
    मधु

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