रविवार, 17 जून 2012

गीत: संग समय के... --संजीव 'सलिल'

गीत:
संग समय के...
संजीव 'सलिल'
*
 
*
संग समय के चलती रहती सतत घड़ी.
रहे अखंडित कालचक्र की मौन कड़ी.....
*


छोटी-छोटी खुशियाँ मिलकर जी पायें.
पीर-दर्द सह आँसू हँसकर पी पायें..
सभी युगों में लगी दृगों से रही झड़ी.....
*


अंकुर, पल्लव, कली, फूल, फल, बीज बना.
सीख न पाया झुकना तरुवर रहा तना।
तूफां ने आ शीश झुकाया व्यथा बड़ी.....
*


दूब डूब जाती पानी में- मुस्काती.
जड़ें जमा माटी में, रक्षे हरियाती..
बरगद बब्बा बोले रखना जड़ें गडी.....
*
 

वृक्ष मौलश्री किसको हेरे एकाकी.
ध्यान लगा खो गया, नगर अब भी बाकी..
'ओ! सो मत', ओशो कहते: 'तज सोच सड़ी'.....
*


शैशव यौवन संग बुढ़ापा टहल रहा.
मचल रही अभिलाषा देखे, बहल रहा..
रुक, झुक, चुक मत, आगे बढ़ ले 'सलिल' छड़ी.....
*


Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



5 टिप्‍पणियां:

  1. Tripti
    wonderful lines
    you have made my day!
    wonderful gift.

    जवाब देंहटाएं
  2. deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.comरविवार, जून 17, 2012 6:14:00 pm

    deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    रुचिकर और मोहक..........!
    साधुवाद !
    सादर,
    दीप्ति

    जवाब देंहटाएं
  3. vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.comरविवार, जून 17, 2012 6:15:00 pm

    vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आ० ’सलिल’ जी,
    अंकुर, पल्लव, कली, फूल, फल, बीज बना.
    सीख न पाया झुकना तरुवर रहा तना।
    तूफां ने आ शीश झुकाया व्यथा बड़ी.....

    अति सुन्दर ! बधाई ।

    विजय

    जवाब देंहटाएं
  4. pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आ. सलिल जी
    सत्य

    शैशव,यौवन संग बुढापा टहल रहा,,,,,,बहुत सुंदर

    पल-पल देखें नन्हा बच्चा ऐसे क्यों है मचल रहा.........
    छड़ी देखकर दादा की जाने क्यों वो संभल रहा|
    दादा के जूते पहनूंगा तब शाला को जाऊँगा ,
    गीली आँखें करके दादा जाने क्यों हो विकल रहा?

    समय चक्र यूं ही चलता है,
    सुनो-गुनो हम सबसे पल-पल कहता है||
    सादर
    प्रणव भारती

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  5. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आ० आचार्य जी,
    प्रेरक गीत के लिये साधुवाद !
    विशेष -

    छोटी-छोटी खुशियाँ मिलकर जी पायें.

    पीर-दर्द सह आँसू हँसकर पी पायें..
    सभी युगों में लगी दृगों से रही झड़ी....

    सादर
    कमल

    जवाब देंहटाएं