रविवार, 13 मई 2012

गीत: अनछुई ये साँझ --संजीव 'सलिल'

गीत:
अनछुई ये साँझ
संजीव 'सलिल'
*

                                                                                        


साँवरे की याद में है बाँवरी 
अनछुई ये साँझ...
*
दिन की चौपड़ पर सूरज ने,
जमकर खेले दाँव.
उषा द्रौपदी के ज़मीन पर,
टिक न सके फिर पाँव.

बाधा मरुथल, खे आशा की नाव री
प्रसव पीढ़ा बाँझ.
साँवरे की याद में है बाँवरी 
अनछुई ये साँझ...
*
अमराई का कतल किया,
खोजें खजूर की छाँव.
नगर हवेली हैं ठाकुर की,
मुजरा करते गाँव.

सांवरा सत्ता पे, तजकर साँवरी
बज रही दरबार में है झाँझ.
साँवरे की याद में है बाँवरी 
अनछुई ये साँझ...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
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2 टिप्‍पणियां:

  1. mohan vashisth

    अमराई का कतल किया, खोजें खजूर की छाँव. नगर हवेली हैं ठाकुर की, मुजरा करते गाँव.

    bahut behatreen sanjeev ji

    bahut pyara geet

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  2. paramjitbali

    बहुत सुन्दर रचना।

    जवाब देंहटाएं