सोमवार, 14 मई 2012

गीत : जैसा चाहो... --संजीव 'सलिल'

गीत :
जैसा चाहो...
संजीव 'सलिल'
*

*
जैसा चाहो मुझसे खेलो,
कृपा करो चरणों में ले लो...
*
मैं हूँ रचना देव! तुम्हारी,
कण-कण में छवि नित्य निहारी.
माया भरमाती है मन को-
सुख में तेरी याद बिसारी.

याद दिलाने तुमने ब्याही
अपनी पीड़ा बिटिया प्यारी.
सबक सिखाने की विधि न्यारी-
करी मौज अब पापड़ बेलो...
*
मैं माटी तुम कुम्भकार हो,
जग असार बस तुम्हीं सार हो.
घृणा, लोभ, मद, मोह, द्वेष हम-
नेह नर्मदा तुम अपार हो.

डुबकी एक लगा लेने दो,
जलप्रवाह तुम धुआंधार हो.
घाट सरस्वती पर उतरें हम-
भक्ति-मुक्ति दे गोदी ले लो...
*
बंदरकूदनी में खा गोता,
फटी पतंग, टूटता जोता.
जाग रहे पंछी कलरव कर-
आँखें मूंदें मानव सोता.

चाह रहा फल-फूल अपरिमित
किन्तु राह में काँटें बोता.
'मरा'  जप रहा पापी तोता-
राम सीखने तक चुप झेलो...
*****

6 टिप्‍पणियां:

  1. mstsagar@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita


    वाह, वाह , वाह बस इतना ही ,
    महिपाल ,१ ४ / ५ / २० १२

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  2. wgcdrsps@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita


    आदरणीय आचार्य जी,
    अति उत्तम, सरल, सरस, भाव भक्ति पूर्ण रचना | ढेर सी बधाईयां
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

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  3. shar_j_n ✆ shar_j_n@yahoo.com

    ekavita


    वाह आचार्य जी!
    ये नायब:

    बंदरकूदनी में खा गोता,
    फटी पतंग, टूटता जोता.
    जाग रहे पंछी कलरव कर-
    आँखें मूंदें मानव सोता.

    चाह रहा फल-फूल अपरिमित
    किन्तु राह में काँटें बोता.
    'मरा' जप रहा पापी तोता-
    राम सीखने तक चुप झेलो... अतिसुन्दर, अतिसुन्दर!

    कितना सुन्दर लिखते हैं आप !

    सादर शार्दुला

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  4. शार्दुला जी
    वन्दे मातरम.आजकल जबलपुर में भँवरताल पार्क में प्रातः भ्रमण में उस मौलश्री वृक्ष के सानिंध्य में कुछ पल बिता रहा हूँ जिसकी छाँव में ओशो को विशिष्ट अनुभूति हुई. लगभग प्रतिदिन एक गीत कलम से उतरता है और एकाविता ई कविता में प्रस्तुत कर दिया जाता है. पिछले कुछ दिनों से अंतरजाल सुविधा भंग थी आज ही चालू हुई.
    आपको गीत रुचा मेरा सृजन कर्म धन्य हुआ. पुण्य सलिला नर्मदा भेड़ाघाट से बहती है. बन्दरकूदनी, धुआंधार, सरस्वती घट आदि स्थानों के चित्र गूगल इमेज में हैं. इनका उल्लेख गीत में अनायास हो गया है.

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  5. - subesujan21@gmail.com

    ati sundar........namskar

    बहुत सुंदर रचनायें हैं

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  6. achal verma ✆ekavita


    तुलसी अपने राम को खीझ भजो या रीझ
    खेत पड़े सो जामिहें उलटो
    सीधो बीज ।।



    अचलवर्मा

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