मुक्तिका:
सपने
संजीव 'सलिल'
*
अनजाने ही देखे सपने.
सपने जो हैं बिलकुल अपने.
सपने में कडवा सच देखा.
बिलकुल बेढब जग के नपने..
पाठ पढ़ाते संत त्याग का.
लगे स्वार्थ की माला जपने..
राजहंस की बिरादारी में
बगुले भाई लगे हैं खपने..
राजनीति दलदल की नगरी.
रथ के चक्र लगे हैं गपने..
अंगारों से ठंडक मिलती.
हिम की शिला लगी है तपने..
चीन्ह-चीन्ह कर बंटी रेवड़ी.
हल्दी-हाथ लगे हैं थपने..
********
सपने
संजीव 'सलिल'
*
अनजाने ही देखे सपने.
सपने जो हैं बिलकुल अपने.
सपने में कडवा सच देखा.
बिलकुल बेढब जग के नपने..
पाठ पढ़ाते संत त्याग का.
लगे स्वार्थ की माला जपने..
राजहंस की बिरादारी में
बगुले भाई लगे हैं खपने..
राजनीति दलदल की नगरी.
रथ के चक्र लगे हैं गपने..
अंगारों से ठंडक मिलती.
हिम की शिला लगी है तपने..
चीन्ह-चीन्ह कर बंटी रेवड़ी.
हल्दी-हाथ लगे हैं थपने..
********
- pranavabharti@gmail.com
जवाब देंहटाएंआ.सलिल जी,
सुंदर रचना हेतु साधुवाद|
पाठ पढ़ते संत त्याग का ,
लगे स्वार्थ की माला जपने ||-------सच्चाई आपकी रचना में रंग लाई ||
बहुत अच्छे ,बहुत सच्चे |
सादर
प्रणव भारती
Rakesh Khandelwal ✆ rakesh518@yahoo.com
जवाब देंहटाएंekavita
मान्य आचार्यजी,
सादर नमन स्वीकारें--
अंगारों से ठंडक मिलती.
हिम की शिला लगी है तपने..
चीन्ह-चीन्ह कर बंटी रेवड़ी.
हल्दी-हाथ लगे हैं थपने..
वाह
राकेश
Mahipal Singh Tomar ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह ,
आपके इस नए तेवर की , सर्व-आयामीं अद्भुत ,
रचना के लिए ,हार्दिक बधाई |
वंदन ,अभिनन्दन ,
सादर ,
महिपाल
आज वाले सपने में :
जवाब देंहटाएंराजहंस की बिरादारी में
बगुले भाई लगे हैं खपने.. ---- आपको राजहंस कहाँ मिल गए सलिल जी, आज के युग में :)
सादर शार्दुला
EK - EK PANKTI NE AANANDIT KAR DIYAA
जवाब देंहटाएंHAI . UMDAA MUKTIKA KE LIYE BADHAAEE.
मुक्तिका ‘सपने’ बहुत सुंदर है, बधाई स्वीकारें।
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