संजीव 'सलिल'
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दिल से निकली दिल की बातें दिल तक जो पहुँचाती है.
मीत! गीत कहिए या कविता, सबको वही लुभाती है..
दीपक जलता, शलभ निछावर कर देता निज जीवन को.
कब चिंता करता कि भावना किसको तनिक सुहाती है?.
नाम कोई हो, धाम कोई हो, अक्षर-शब्द न तजते अर्थ.
व्यर्थ मनुज को उहापोह या शंका क्यों मन भातीं हैं?.
कथ्य-शिल्प पूरक होते हैं, प्रतिस्पर्धी मत मानें.
फूल भेंट दें या गुलदस्ता निहित स्नेह की पाती है..
जो अनुरागी वही विरागी, जो अमूल्य बहुमूल्य वही.
खोना-पाना, लेना-देना, जग-जीवन की पाती है..
'सलिल' न निंदा की चट्टानों से घबराकर दूर रहो.
जो पत्थर को फोड़ बहे, नर्मदा तार-तर जाती है..
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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achal verma ✆
जवाब देंहटाएं2:08 am (3 घंटे पहले)
गुथ्थियाँ सुलझ गईं और बात समझ आ गई
आपकी कविता दिलों को फिर बहुत लुभा गई
अचल वर्मा
vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंekavita
आ० ’सलिल’ जी,
दीपक जलता, शलभ निछावर कर देता निज जीवन को.
कब चिंता करता कि भावना किसको तनिक सुहाती है?.
बहुत सुन्दर ।
बधाई,
विजय
- mandalss@gmail.com
जवाब देंहटाएंअति सुंदर आचार्यजी
एत और उम्दा रचना के लिए बधाई
ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी,
मुक्तिका के द्वारा भाषा के प्रभाव का सुन्दर निरूपण है ।
आपकी लेखनी को पुनः नमन
सादर,
कमल
tejwani girdhar
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना है, साधुवाद
subodh srivastava
जवाब देंहटाएंsunder abhivyakti..