रविवार, 27 मार्च 2011

बाल गीत: लंगडी खेलें..... संजीव 'सलिल'

*
बाल गीत:                                                 

लंगडी खेलें.....

संजीव 'सलिल'
*
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*************

11 टिप्‍पणियां:

  1. "सलिल जी ,

    बहुत ही अच्छी रचना ....
    बचपन की याद हो आई ,"

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  2. तुम लंगडी में रहीं प्रवीणा जान गया हूँ.
    हरा न पाऊँगा लोहा भी मान गया हूँ..

    काश न होते बड़े, सभी हम बच्चे होते.
    निश्छल-भोले और अकल के कच्चे होते..

    तब दुनिया में कहीं न ये घोटाले होते.
    साथ हमारे 'सलिल' झूमते मैना-तोते..

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  3. धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’सोमवार, मार्च 28, 2011 7:59:00 am

    - dkspoet@yahoo.com

    आदरणीय आचार्य जी,

    सुंदर बाल गीत

    बधाई

    धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

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  4. achal verma
    ekavita,

    एक अति सराहनीय गीत |
    हम लोग बचपन में खूब खेला करते थे लंगडी |
    उस पर आधारित यह गीत जैसे बचपन वापस
    ले आया हमारा , फिर | बहुत सुन्दर लगा |धन्यबाद ||

    Your's ,

    Achal Verma

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  5. शकुन्तला बहादुरसोमवार, मार्च 28, 2011 8:00:00 am

    - shakun.bahadur@gmail.com

    वाह! वाह!! दृष्य आँखों के सामने आ गया।बड़ा आनन्द आया,आचार्य जी।
    शकुन्तला बहादुर

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  6. लंगडी के हम सभी खिलाड़ी फिर मिल खेलें.
    यह भागा, वह दौड़ा, बच लें या फिर छूलें..

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय संजीव जी:

    बहुत सरल और प्यारा सा बाल गीत है ...

    मेरी पत्नी रजनी बच्चों के लिये हिन्दी में summer camp करती हैं , उन्हें भेज दिया है - वह इसे प्रयोग करेंगी ।


    सादर

    अनूप



    Anoop Bhargava
    732-407-5788 (Cell)
    609-275-1968 (Home)
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    I feel like I'm diagonally parked in a parallel universe.

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  8. - manjumahimab8@gmail.com


    अति रोचक बाल-गीत है, संजीव जी, बधाई..

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  9. आदरणीय आचार्य जी,
    बहुत रोचक | बधाई हो
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

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  10. अति रोचक बाल गीत है. सलिल जी विविधता की खान हैं

    --ख़लिश

    जवाब देंहटाएं
  11. अनूप जी! आपकी गुणग्राहकता को नमन. यह इस रचना का सही उपयोग हुआ. स्व. बच्चन जी ने एक रचना में लिखा था कि गंगा किनारे किसी बावले को अपनी किसी रचना गुनगुनाते सुनूँ तो कविता करना सार्थक हो जाये. मेरी भी ऐसी हि कामना है. अपने पूर्ण करदी.
    खलिश जी, शुक्ल जी, मंजू जी, शकुन्तला जी, सज्जन जी, अचल जी... सब की सहृदयता हेतु आभार.

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