मुक्तिका
संजीव 'सलिल'
*
आँखों जैसी गहरी झील.
सकी नहीं लहरों को लील..
पर्यावरण प्रदूषण की
ठुके नहीं छाती में कील..
समय-डाकिया महलों को
कुर्की-नोटिस कर तामील..
मिष्ठानों का लोभ तजो.
खाओ बताशे के संग खील..
जनहित-चुहिया भोज्य बनी.
भोग लगायें नेता-चील..
लोकतंत्र की उड़ी पतंग.
थोड़े ठुमके, थोड़ी ढील..
पोशाकों की फ़िक्र न कर.
हो न इरादा गर तब्दील..
छोटा मान न कदमों को
नाप गये हैं अनगिन मील..
सूरज जाये महलों में.
'सलिल' कुटी में हो कंदील..
********************
संजीव 'सलिल'
*
आँखों जैसी गहरी झील.
सकी नहीं लहरों को लील..
पर्यावरण प्रदूषण की
ठुके नहीं छाती में कील..
समय-डाकिया महलों को
कुर्की-नोटिस कर तामील..
मिष्ठानों का लोभ तजो.
खाओ बताशे के संग खील..
जनहित-चुहिया भोज्य बनी.
भोग लगायें नेता-चील..
लोकतंत्र की उड़ी पतंग.
थोड़े ठुमके, थोड़ी ढील..
पोशाकों की फ़िक्र न कर.
हो न इरादा गर तब्दील..
छोटा मान न कदमों को
नाप गये हैं अनगिन मील..
सूरज जाये महलों में.
'सलिल' कुटी में हो कंदील..
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आदरणीय आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंफ़िर से ज़मीन से जुड़ी सुन्दर मुक्तिका.
पतंगें तो खूब उडी होंगी भारत में ...
आभार,
सादर शार्दुला