शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

मुक्तिका ; पटवारी जी ---- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
पटवारी जी                                                                                             
संजीव 'सलिल'
*
यहीं कहीं था, कहाँ खो गया पटवारी जी?
जगते-जगते भाग्य सो गया पटवारी जी..

गैल-कुआँ घीसूका, कब्जा ठाकुर का है.
फसल बैर की, लोभ बो गया पटवारी जी..

मुखिया की मोंड़ी के भारी पाँव हुए तो.
बोझा किसका?, कौन ढो गया पटवारी जी..

कलम तुम्हारी जादू करती मान गये हम.
हरा चरोखर, खेत हो गया पटवारी जी..

नक्शा-खसरा-नकल न पायी पैर घिस गये.
कुल-कलंक सब टका धो गया पटवारी जी..

मुट्ठी गरम करो लेकिन फिर दाल गला दो.
स्वार्थ सधा, ईमान तो गया पटवारी जी..

कोशिश के धागे में आशाओं का मोती.
'सलिल' सिफारिश-हाथ पो गया पटवारी जी..

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12 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय प्रवर सलिल जी,
    आज तो आप की यह मुक्तिका, मेरे मन की उमड़ती पीड़ा का, अन्योक्ति के रूप में
    साकार प्रतिबिम्ब बन गई | आप कुछ अन्तर्यामी हैं क्या ?
    कमल

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  2. अति सुंदर. सादे शब्दों में सादे मन की पीड़ा.

    --ख़लिश

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  3. कमल कुसुम की खलिश सलिल-पाथेय बन गयी.
    शाप स्वयं वरदान हो गया पटवारी जी..

    आप तीनों की गुण-ग्राहकता को नमन..

    जवाब देंहटाएं
  4. मुट्ठी गरम करो लेकिन फिर दाल गला दो.

    स्वार्थ सधा, ईमान तो गया पटवारी जी..

    bahut khoob 'salil ji

    जवाब देंहटाएं
  5. श्रीप्रकाश शुक्लरविवार, फ़रवरी 13, 2011 10:34:00 am

    shriprakash shukla ✆
    ekavita

    विवरण दिखाएँ ९:५९ पूर्वाह्न (35 मिनट पहले)



    आदरणीय आचार्य जी,
    वर्तमान यथार्थ का सटीक चित्रण करती हुई सुन्दर ग़ज़ल.
    बधाई हो
    आप की मंच पर कुछ दिनों की अनुपस्थिति लगी हुई है. कृपया ध्यान दीजिये
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

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  6. ग़ज़ल....पटवारी जी के रद्दीफ में 'पो गया' काफिया प्रयोग जबरदस्त| नमन| आप तो दिल्ली-आगरा रीजन के काफ़ी शब्दों का प्रयोग करते हैं सलिल जी| बहुत खूब|

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  7. Ashvani Sharma
    khet aur khalihan gaya ghar ki bari hai aap n mane gaanv ro gaya patwari ji

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय आचार्य जी
    एक संपूर्ण व्यंग्यात्मक ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।
    सादर

    धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
    वरिष्ठ अभियंता, जनपद निर्माण विभाग
    एनटीपीसी लिमिटेड, कोलडैम हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट
    बिलासपुर, हिमांचल प्रदेश
    भारत

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  9. वाह! कितने दिनों बाद और कितना सरल और प्रभावशाली !
    कहाँ थे आप आचार्य जी?


    यहीं कहीं था, कहाँ खो गया पटवारी जी?
    जगते-जगते भाग्य सो गया पटवारी जी...... बहुत ही पैना, बहुत सुन्दर, सरल...ironic!!

    गैल-कुआँ घीसूका, कब्जा ठाकुर का है. --- गैल यानि गली ?
    फसल बैर की, लोभ बो गया पटवारी जी.. ---- ओह ! Super!

    मुखिया की मोंड़ी के भारी पाँव हुए तो.
    बोझा किसका?, कौन ढो गया पटवारी जी.. क्या कहूँ !!

    कलम तुम्हारी जादू करती मान गये हम. ---वाह! क्या व्यंगोक्ति!!
    हरा चरोखर, खेत हो गया पटवारी जी.. ---- आचार्य जी, ज़रा इसका मतलब बताईये ना प्लीज़!

    नक्शा-खसरा-नकल न पायी पैर घिस गये. --- यहाँ खसरा का अर्थ ? वैसे मुख्य अर्थ तो समझ आ गया.
    कुल-कलंक सब टका धो गया पटवारी जी.. कितना व्यंगपूर्ण!

    मुट्ठी गरम करो लेकिन फिर दाल गला दो. --- आह!
    स्वार्थ सधा, ईमान तो गया पटवारी जी.. ---बहुत ही प्रभावशाली !

    कोशिश के धागे में आशाओं का मोती.
    'सलिल' सिफारिश-हाथ पो गया पटवारी जी.. कितना सुन्दर और अर्थपूर्ण...कितना नयापन लिए लिखा है ये आपने सलिल जी....मन खुश हो गया पढ़ के !!

    सादर शार्दुला

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