गीत:
पहले जीभर.....
संजीव 'सलिल'
*
पहले जीभर लूटा उसने,
फिर थोड़ा सा दान कर दिया.
जीवन भर अपमान किया पर
मरने पर सम्मान कर दिया.....
*
भूखे को संयम गाली है,
नंगे को ज्यों दीवाली है.
रानीजी ने फूँक झोपड़ी-
होली पर भूनी बाली है..
तोंदों ने कब क़र्ज़ चुकाया?
भूखों को नीलाम कर दिया??
*
कौन किसी का यहाँ सगा है?
नित नातों ने सदा ठगा है.
वादों की हो रही तिजारत-
हर रिश्ता निज स्वार्थ पगा है..
जिसने यह कटु सच बिसराया
उसका काम तमाम कर दिया...
*
जो जब सत्तासीन हुआ तब
'सलिल' स्वार्थ में लीन हुआ है.
धनी अधिक धन जोड़ रहा है-
निर्धन ज्यादा दीन हुआ है..
लोकतंत्र में लोभतंत्र ने
खोटा सिक्का खरा कर दिया...
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आ० आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंअत्यंत यथार्थपरक गीत के लिये साधुवाद | बहुत्र सही कहा आपने कि-
" कौन किसी का यहाँ सगा है
नित नातों ने सदा ठगा है
वादों की हो रही तिजारत
हर रिश्ता निज स्वार्थपगा है
जिसने यह कटु सच बिसराया
उसका काम तमाम कर दिया "
कमल
achal verma
जवाब देंहटाएंekavita
सलिल जी ,
बहुत ही चुभता हुआ सत्य :
|लोकतंत्र में लोभतंत्र ने
खोटा सिक्का खरा कर दिया...|
और यही सारे समस्यायों का जड़ बन गया है |
अब ये तो कोई याद ही नहीं रखना चाहता की :
" परहित सरिस धर्म नहीं भाई |
पर पीड़ा सम नहीं अधमाई ||"
-रामायण की एक चौपाई ||
Your's ,
Achal Verma
Gita :
जवाब देंहटाएंsrvaThaa saty...chaashni paga..... bahut sundar.... saadar Gita