कहीं निगाह...
संजीव 'सलिल'
*
कदम तले जिन्हें दिल रौंद मुस्कुराना है.
उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है
कहीं निगाह सनम और कहीं निशाना है.
हज़ार झूठ सही, प्यार का फसाना है..
न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.
करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..
पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह दे.
न स्वार्थ हो तो गधा बाप को बताना है..
जुलुम की उनके कोई इन्तेहां नहीं लोगों
मेरी रसोई के आगे रखा पाखाना है..
किसी का कौन कभी हो सका या होता है?
अकेले आये 'सलिल' औ' अकेले जाना है..
चढ़ाये रहता है चश्मा जो आँख पे दिन भर.
सचाई ये है कि बन्दा वो 'सलिल' काना है..
गुलाब दे रहे हम तो न समझो प्यार हुआ.
'सलिल' कली को कभी खार भी चुभाना है..
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
यह ग़ज़ल ( तरही मुक्तिका) इतनी खुबसूरत और उम्द्दा कही गई है कि उसे नजरअंदाज करना कम से कम मेरे वश मे तो नहीं ही है, इसलिये इस ग़ज़ल को मुख्य ब्लॉग पर स्थान दिया जा रहा है | इस खुबसूरत ग़ज़ल पर दाद स्वीकार करें |
जवाब देंहटाएंaapkee kadradanee ka shukriya.
जवाब देंहटाएंन बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.
जवाब देंहटाएंकरो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..
jai ho sir ji
salil ji saadar pranaam,
जवाब देंहटाएंaap ki is behad rochak ghazaal ko padh kar mai ati harshit hu. aap ke dwara kahi gayi panktiya mai in par koi comment bhi karu to kaise.
kya khub kaha hai aapne ki,
पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह दे.
न स्वार्थ हो तो गधा बाप को बताना है..
aur
चढ़ाये रहता है चश्मा जो आँख पे दिन भर.
सचाई ये है कि बन्दा वो 'सलिल' काना है..
मिले आशीष तो गिरि को भी समंदर कह दें.
जवाब देंहटाएंहमें एडमिन से नई मुक्तिका छापना है..
हा... हा... हा...
यह ग़ज़ल हास्य का पुट लिए हुए बदलते रिश्तों और बदलती मानसिकता पर करारी चोट करती है| और बहुत ही सरल भाषा में अपनी बात कह जाती है|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर|
यकीनन बहुत सोच विचार कर लिखा लगता है:
जवाब देंहटाएंन बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.
करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..
पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह दे.
न स्वार्थ हो तो गधा बाप को बताना है..
वाह आचार्य जी वाह,
जवाब देंहटाएंयही फायदा साहित्यकारों के संगत का है, अलग अलग रंग दिखता रहता है,
आपका यह रंग बहुत ही दिलचस्प लगा,
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल निकाले है सर,
कहीं निगाह सनम और कहीं निशाना है.
हज़ार झूठ सही, प्यार का फसाना है..
आज की परिवेश पर चोट करती शानदार शे'र , और ससुर जी को समर्पित उस शे'र का तो कहना ही क्या है ,बहुत खूब , मैं तो आनंद ले रहा हूँ जम कर , हा हा हा हा ,
नवीन बागी का प्रताप देख लो यारों.
जवाब देंहटाएंलड़ा के नैन उन्हें नैन में बसाना है..
हा हा हा हा हा बहुत खूब आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंकुछ सीखने की तमन्ना है दिल मे बागी,
आचार्य के पैरो के पास बैठ पा जाना है ,