सोमवार, 15 मार्च 2010

सलिल के हाइकु

आया वसंत,
इन्द्रधनुषी हुए
दिशा-दिगंत..
*
शोभा अनंत
हुए मोहित, सुर
मानव संत..
*
प्रीत के गीत
गुनगुनाती धूप
बनालो मीत.
*
जलाते दिए
एक-दूजे के लिए
कामिनी-कंत..
*
पीताभी पर्ण
संभावित जननी
जैसे विवर्ण..
*
हो हरियाली
मिलेगी खुशहाली
होगे श्रीमंत..
*
चूमता कली
मधुकर गुंजार
लजाती लली..
*
सूरज हुआ
उषा पर निसार
लाली अनंत..
*
प्रीत की रीत
जानकार न जाने
नीत-अनीत.
*
क्यों कन्यादान?
अब तो वरदान
दें एकदंत..
**********

4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छे बने हैं |
    ख़ास बात दिखती है कि कहीं कहीं तुकबंदी के कारण हायकू में लय आ गयी है |
    आचार्यजी को , बधाई |

    अवनीश तिवारी

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  2. अवनीश जी!
    हाइकु में लय हो तो सरसता आ जाती है. हाइकु गीत, और हाइकु गजल में लय होना अनिवार्य है.

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  3. चंदन कुमार झा …

    सुन्दर !!!

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