चिट्ठाकारों को 'सलिल', दे दोहा उपहार.
मना रहा- बदलाव का, हो चिटठा औज़ार..
नेह नरमदा से मिली, विहँस गोमती आज.
संस्कारधानी अवध, आया- हो शुभ काज..
'डूबे जी' को निकाले, जो वह करे 'बवाल'.
किस लय में 'किसलय' रहे, पूछे कौन सवाल?.
चिट्ठाकारों के मिले, दिल के संग-संग हाथ.
अंतर में अंतर न हो, सदय रहें जगनाथ..
उड़ न तश्तरी से कहा, मैंने खाकर भंग.
'उड़नतश्तरी' उड़ रही', कह- वह करती जंग..
गिरि-गिरिजा दोनों नहीं, लेकिन सुलभ 'गिरीश'.
'सलिल' धन्य सत्संग पा, हैं कृपालु जगदीश..
'सलिल' धन्य सत्संग पा, हैं कृपालु जगदीश..
अपनी इतनी ही अरज, रखे कुशल-'महफूज़'.
दोस्त छुरी के सामने, 'सलिल' न हो खरबूज..
दोस्त छुरी के सामने, 'सलिल' न हो खरबूज..
बिना पंख बरसात बिन, करता मुग्ध 'मयूर'.
गप्प नहीं यह सच्च है, चिटठाकार हुज़ूर!..
गप्प नहीं यह सच्च है, चिटठाकार हुज़ूर!..
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चिट्ठाकारों के मिले, दिल के संग-संग हाथ.
जवाब देंहटाएंअंतर में अंतर न हो, सदय रहें जगनाथ..
or ye bhee mazedar hai
अपनी इतनी ही अरज, रखे कुशल-'महफूज़'.
दोस्त छुरी के सामने, 'सलिल' न हो खरबूज..
bahut sundar
जय हो चिट्ठाकारों की.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दोहे मौके पर. :)
wah kya baat kya baat kya baat........................
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