बुधवार, 6 जनवरी 2010

सरस्वती वंदना : ४ संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना : ४
संजीव 'सलिल'
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हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!
अम्ब विमल मति दे...
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कलकल निर्झर सम सुर-सागर.
तड़ित-ताल के हों कर आगर.
कंठ विराजे सरगम हरदम-
कृपा करें नटवर-नटनागर.
पवन मुक्त प्रवहे...
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विद्युत्छटा अलौकिक चमके.
चरणों में गतिमयता भर दे.
अंग-अंग से भाव-साधना-
चंचल चपल चारु चित कर दे.
तुहिन-बिंदु पुलके...
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चित्र-गुप्त अक्षर संवेदन.
शब्द-ब्रम्ह का कलम निकेतन.
सृजे 'सलिल' साहित्य सनातन-
शाश्वत मूल्यों का शुचि मंचन.
मन्वंतर चहके...
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4 टिप्‍पणियां:

  1. khallopapa@yahoo.com

    सलिल जी,

    आपके सरस्वती वंदना पढ़ रही हूँ।

    कभी अगर रिकार्ड कर पाई तो आपको भेजूँगी।

    अत्यंत सुंदर कहना भी कम ही होगा।

    सादर
    मानोशी
    www.manoshichatterjee.blogspot.com

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  2. मानोशी जी!

    वन्दे मातरम.

    आप सरस्वती वन्दनाओं को स्वर दें तो हार्दिक प्रसन्नता होगी. इनका ध्वन्यांकन मिलने पर दिव्यनर्मदा ( divynarmada.blogspot.com) में लगाया जायगा.

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  3. आदरणीय संजीव जी:

    आप की सभी सरस्वती वंदनाएं बहुत अच्छी लगी ।

    सादर
    अनूप

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