शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009

नव गीत: हिल-मिल दीपावली मना रे!...

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नव गीत

हिल-मिल
दीपावली मना रे!...

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चक्र समय का
सतत चल रहा.
स्वप्न नयन में
नित्य पल रहा.
सूरज-चंदा
उगा-ढल रहा.
तम प्रकाश के
तले पल रहा,
किन्तु निराश
न होना किंचित.
नित नव
आशा-दीप जला रे!
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...

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तन दीपक
मन बाती प्यारे!
प्यास तेल को
मत छलका रे!
श्वासा की
चिंगारी लेकर.
आशा-जीवन-
ज्योति जला रे!
मत उजास का
क्रय-विक्रय कर.
'सलिल' मुक्त हो
नेह लुटा रे!
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...

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= दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

3 टिप्‍पणियां:

  1. कितना सत्य है इन नेह भरे शब्दों में.
    मन का दिया जलता रहने से ही तो जीवन प्रकाशमान रहता है. इतने सुंदर भावों के लिये धन्यबाद.

    तन दीपक
    मन बाती प्यारे
    हिलमिल कर
    दीपावली मना रे.

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  2. सुख और समृद्धि आपके आँगना में झिलमिलायें.
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगायें..
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनायें.
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनायें..

    -समीर लाल 'समीर'

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  3. समय चक्र, महेंद्र मिश्र.शनिवार, अक्टूबर 17, 2009 8:47:00 am

    दीवाली की हार्दिक-ढेरों शुभ कामनाओं के साथ.
    आपका भविष्य उज्जवल हो और प्रकाशमान हो.

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