शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009

शब्दों की दीपावली: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

शब्दों की दीपावली

जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप.
मोती पलते गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप.
सीप-दीप से हम मनुज तनिक न लेते सीख.
इसीलिए तो स्वार्थ में लीन पड़ रहे दीख.
दीप पर्व पर हों संकल्पित रह हिल-मिलकर.
दें उजियारा आत्म-दीप बन निश-दिन जलकर.
- छंद अमृतध्वनि

4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया रचना....आभार..
    दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  2. आचार्य जी, दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। छंद की द्वितीय पंक्ति को एक बार देखे।

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  3. आपकी कविताओं का हर शब्द एक दीप की तरह लगता है और अपने भावों का तेल डाल कर उसमें नेह की बाती जला कर सबको ज्ञान की जो राह दिखा रहे हैं उसके लिये बहुत धन्यबाद.
    दीवाली की बहुत शुभकामनाएं!

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