सोमवार, 12 मई 2025

मई १२, सॉनेट, बाल गीत, निश्चल छंद, नवगीत, मुक्तिका, दोहा, गन्ना, आयुर्वेद, कौरव-पांडव

सलिल सृजन मई १२
*
फुल बगिया : गीत
कौरव-पांडव
कौरव-पांडव होते घर-घर
हिल-मिल रहें स्वर्ग हो भू पर
अड़ें-लड़ें हो जाएँ बेघर
.
विधि-हरि-हर सम साथ रहें सब
अल्ला-ईसा-बुद्ध-संत अब
हों मतभेद मिटाएँ हँसकर-
शांति तभी मनभेद न हों जब।
कंकर-कंकर में हैं शंकर
पहचानें तो हों मुक्तेश्वर
बिसराएँ तो हो प्रलयंकर... 
.
चक्र सुदर्शन जब चलता है
मिट जाता वह जो छलता है
है गत-आगत वर्तमान भी
शत्रु हमेशा कर मलता है।
मिट जाते हैं वे शत होकर
जो निर्बल को मारें ठोकर
समय हँसा करता है उन पर... 
.
श्वेत-श्याम होता है जीवन
जहँ उधड़े तहँ कर दे सीवन
मरुथल को भी स्वेद-सलिल बह
बना सके हरियाता मधुवन।
बिन पानी धरती हो बंजर 
पानी पा हो सुंदर मंजर 
पानी बचा मनुज जीवन भर... 
कृष्ण कमल को थामे हर कर
राधा-माधव पुजते घर-घर
गो कुल रख गोकुल हो भारत
बरसाने के रस से हो तर।
गूँजें गीत शांति के हर घर
यौवन करे क्रांति जग बेहतर 
हर आनन चमके बन भास्कर... 
१२.५.२०२५
०००

***
आयुर्वेद, गन्ना, ईख,
भारतवासी पूजते, 'गन्ना, ईख' पुकार।
'अंस, ऊंस' महाराष्ट्र में, लोग कहें कर प्यार।१।
*
'चेरुकु' कहता आंध्र है, 'इक्षुआक' बंगाल।
गुजराती में 'शेरडी', 'भूरस' नाम कमाल।२।
*
मलयालम में 'करिंबू' , तमिल 'करंपु' भुआल।
'मधुतृण, दीर्घच्छद' मिले, संस्कृत नाम रसाल।३।
*
'सैकेरम ऑफिसिनेरम', कहे पौध विज्ञान।
'पोआसिआ' कुलनाम है, हम कहते रस-खान।४।
*
लोक कहे 'गुड़मूल' है, कुछ कहते 'असिपत्र'।
'कसबुस्सुकर' अरब में, है रस-राज विचित्र।५।
*
नाम 'नैशकर' फारसी, 'पौंड्रक' एक प्रजाति।
'शुगर केन' इंग्लिश कहे, जगव्यापी है ख्याति।6।
*
छह से बारह फुटी कद, मिलता यह सर्वत्र।
चौड़े इंची तीन हों, चौ फुट हरियल पत्र।7।
*
पुष्प गुच्छ होता बड़ा, बहुशाखी लख रीझ।
फूले वर्षा काल में, शीत फले लघु बीज।८।
*
लाल श्वेत हो श्याम भी, ले बेलन आकार।
बाँस सदृश दे सहारा, सह लेता है भार।९।
*
रक्तपित्त नाशक कफद, बढ़ा वीर्य-बल मीत।
मधुर स्निग्ध शीतल सरस, मूत्र बढ़ाए रीत।१०।
*
गरम प्रदेशों में करें, खेती हों संपन्न।
गन्ना ग्यारस को न जो, पूजे रहे विपन्न।११।
*
रस गुड़ शक्कर प्रदाता, बना गड़ेरी चूस।
आनंदित हों पान कर, शुगर केन का जूस।१२।
*
गन्ना खेती लाभप्रद, शक़्कर बिके विदेश।
मुद्रा कमा विदेश की, विकसे भारत देश।१३।
*
कच्चे गन्ने से बढ़े, कफ प्रमेह अरु मेद।
पित्त मिटाए अधपका, हरे वात बिन खेद।१४।
*
रक्त पित्त देता मिटा, पक्का गन्ना मीत।
वीर्य शक्ति बल बढ़ाएँ, खा गन्ना शुभ रीत।१५।
*
क्षुधा-वृद्धि कर पचाएँ, भोजन गुड़ खा आप।
श्रम-त्रिदोष नाशक मधुर, साफ़ करे खूं आप।१६।
*
मृदा पात्र में रस भरें, रखें ढाँक दिन सात।
माह बाद दस ग्राम ले, करें कुनकुना तात। १७ अ।
तीन ग्राम सेंधा नमक, मिला कराएँ पान।
पेट-दर्द झट दूर हो, पड़े जान में जान।१७ आ।
*
तपा उफाना रस रखें, शीशी में सप्ताह।
कंठरोध कुल्ला करें, अरुचि न भरिए आह।१८ अ।
भोजन कर रस पीजिए, बीस ग्राम यदि आप।
पाचक खाया पचा दे, अपच न पाए व्याप।१८ आ।
*
टुकड़े करिए ईख के, छत पर रखिए रात।
ओस-सिक्त लें चूस तो, मिटे कामला तात।१९।
*
ताजा रस जड़ क्वाथ से, मिटते मूत्र-विकार।
मूत्र-दाह भी शांत हो, आप न मानें हार।२०।
*
गौ-घी चौगुन रस पका, सुबह-शाम दस ग्राम।
कास अगर पी लीजिए, तुरत मिले आराम।२१।
*
जब रस पक आधा रहे, मधु चौथाई घोल।
मृदा-पात्र में माह दो, रख सिरका अनमोल।२२ अ।
बना पिएँ जल संग हो, ज्वर-तृष्णा झट ठीक।
मूत्र-कृच्छ भी दूर हो, मेद मिटे शुभ लीक।२२ आ।
*
चेचक मंथर ज्वर अगर, आसव तिगुना नीर।
मिला बदन पर लगा लें, शीघ्र न्यून हो पीर।२३।
*
दुःख दे शुष्क जुकाम यदि, मुँह से आए बास।
मिर्च चूर्ण गुड़ दही लें, सुबह ठीक हो श्वास।२४।
*
बूँद सौंठ-गुड़ घोल की, नाक-छिद्र में डाल।
हिक्का मस्तक शूल से, मुक्ति मिले हर हाल।२५।
*
गुड़-तिल पीसें दूध सँग, घी संग करिए गर्म।
सिरोवेदना मिटाने, खा लें करें न शर्म।२६।
*
पीड़ित यदि गलगण्ड से, हरड़ चूर्ण लें फाँक।
गन्ना रस पी लें तुरत, रोग न पाए झाँक।२७।
*
भूभल में सेंका हुआ, गन्ना चूसें तात।
लाभ मिले स्वरभंग में, करिए जी भर बात।२८।
*
गुड़ सरसों के तेल का, समभागी कर योग।
सेवन करिए दूर हो, शीघ्र श्वास का रोग।२९।
*
पाँच ग्राम जड़ ईख की, कांजी सँग लें पीस।
तिय खाए पय-वृद्धि हो, कृपा करें जगदीस।३०।
*
रस अनार अरु ईख का, मिला पिएँ समभाग।
खूनी डायरिया घटे, होन निरोग बड़भाग।३१।
*
गुड में जीरा मिलाकर, खाएँ विहँस हुजूर।
अग्निमांद्य से मुक्त हों, शीत-वात हो दूर।३२।
*
रक्त अर्श के मासे या, गर्भाशय खूं स्राव।
रस भीगी पट्टी रखें, होता शीघ्र प्रभाव।३३।
*
मूत्रकृच्छ मधुमेह या, वात करें हैरान।
गुड़ जल जौ का खार लें, बात वैद्य की मान।३४।
*
बैठें पानी गर्म में, पथरी को कर दूर।
गर्म दूध-गुड़ जब पिए, हो पेशाब जरूर।३५।
*
ढाई ग्राम चुना बुझा, गुड़ लें ग्यारह ग्राम।
वृक्क शूल में लें वटी, बना आप श्रीमान।३६।
*
प्रदर रोग में छान-लें, गुड़ बोरी की भस्म।
लगातार कुछ दिनों तक, है उपचार न रस्म।।३७।
*
चूर्ण आँवला-गुड़ करे, वीर्यवृद्धि लें मान।
मूत्रकृच्छ खूं-पित्त की, उत्तम औषधि जान।३८।
*
गुड़-अजवायन चूर्ण से, मिटते रक्त-विकार।
रोग उदर्द मिटाइए, झट औषधि स्वीकार।३९।
*
कनखजूर जाए चिपक, फिक्र न करिए आप।
गुड़ को जला लगाइए, कष्ट न पाए व्याप।४०।
*
अदरक पीपल हरड़ या, सौंठ चूर्ण पँच ग्राम।
गर्म दूध गुड़ में मिला, खाएँ सुबहो-शाम।४१ अ।
शोथ कास पीनस अरुचि, बवासीर गलरोग।
संग्रहणी ज्वर वात कफ, श्याय मिटा दे योग।४१ आ।
*
शीतल जल में घोल गुड़, कई बार लें छान।
पिएँ शांत ज्वार-दाह हो, पड़े जान में जान।४२।
*
काँच शूल काँटा चुभे, चिपकाएँ गुड़ गर्म।
मिलता है आराम झट, करें न नाहक शर्म।४३।
*
धार-ऊष्ण गौ दुग्ध को, मीठा कर गुड़ घोल।
यदि नलवात तुरत पिएँ, बैठे नहीं अबोल।४४।
*
गन्ना-रस की नसी दें, यदि फूटे नकसीर।
दे आराम तुरत फुरत, औषधि यह अक्सीर।४५।
*
हिक्का हो तो पीजिए, गन्ना रस दस ग्राम।
फिक्र न करिए तनिक भी, तुरत मिले आराम।४६।
*
अदरक में गुड़ पुराना, मिला खाइए मीत।
मिटे प्रसूति-विकार अरु, कफ उपयोगी रीत।४७।
*
जौ के सत्तू साथ कर, ताजे रस का पान।
पांडु रोग या पीलिया, का शर्तिया निदान।४८।
*
पीसें जौ की बाल फिर, पी लें रस के साथ।
कोष्ठबद्धता दूर हो, लगे सफलता हाथ।४९।
*
गन्ना रस को लें पका, ठंडा कर पी आप।
दूर अफ़ारा कीजिए, शांति सके मन व्याप।५०।
*
गन्ना रस अरु शहद पी, पित्त-दाह हो दूर।
खाना खाकर रस पिएँ, हो परिपाक जरूर।५१।
*
शहद आँवला-ईख रस, मूत्रकृच्छ कर नष्ट।
देता है आराम झट, मेटे सकल अनिष्ट।५२।
१२.५.२०२३
***
सॉनेट
विश्वास
मन में जब विश्वास जगा है
कलम कह रही उठो लिखो कुछ
तुम औरों से अलग दिखो कुछ
नाता लगता प्रेम पगा है
मन भाती है उषा-लालिमा
अँगना में गौरैया चहके
नीम तले गिलहरिया फुदके
संध्या सोहे लिए कालिमा
छंद कह रहा मुझे गुनगुना
भजन कह रहा भज, न भुनभुना
कथा कह रही कर न अनसुना
मंजुल मति कर सलिल आचमन
सजा रही हँस सृजन अंजुमन
हो संजीव नृत्य रत कन-कन
१२-५-२०२२
•••
सॉनेट
कृपा
किस पर नहीं प्रभु की कृपा
वह सभी को करता क्षमा,
मन ईश में किसका रमा
कितना कहीं कोई खपा।
जो बो रहे; वह पा रहे
जो सो रहे; वे खो रहे,
क्यों शीश धुनकर रो रहे
सब हाथ खाली जा रहे।
जो जा रहे फिर आ रहे
रच गीत अपने गा रहे
जो बाँटते वह पा रहे।
जोड़ा न आता काम है
दामी मिला बेदाम है
कर काम जो निष्काम है।
१२-५-२०२२
•••
सॉनेट
सरल
*
वही तरता जो सरल है
सदा रुचता जो विमल है
कंठ अटके जो गरल है
खिले खिलखिलकर कमल है।
कौन कहिए नित नवल है
सचल भी है; है अचल भी
मलिन भी है, धवल भी है
अजल भी है; है सजल भी।
ठोस भी है; तरल भी है
यही असली है, नकल भी
अमिय भी है; गर्ल भी है
बेशकल पर हर शकल भी।
नित्य ढलता पर अटल है
काट उगता, वह फसल है।
१२-५-२०२२
•••
दोहा सलिला
चाँद-चाँदनी भूलकर, देखें केवल दाग?
हलुआ तज शूकर करे, विद्या से अनुराग।।
खाल बाल की निकालें, नहीं आदतन मीत।
अच्छे की तारीफ कर, दिल हारें दिल जीत।।
ठकुरसुहाती मत कहें, तजिए कड़वा बोल।
सत्य मधुरता से कहें, नहीं पीटने ढोल।।
शो भा सके तभी सलिल, जब शोभा शालीन।
अतिशय सज्जा-सादगी, कर मनु लगता दीन।।
खूबी-खामी देखकर, निज मत करिए व्यक्त।
एकांगी बातें करे, जो हो वह परित्यक्त।।
१२-५-२०२२
○○○
दोहा सलिला
*
मंगल है मंगल करें, विनती मंगलनाथ
जंगल में मंगल रहे, अब हर पल रघुनाथ
सभ्य मनुज ने कर दिया, सर्वनाश सब ओर
फिर हो थोड़ा जंगली, हो उज्जवल हर भोर
संपद की चिंता करें, पल-पल सब श्रीमंत
अवमूल्यित हैं मूल्य पर, बढ़ते मूल्य अनंत
नया एक पल पुराना, आजीवन दे साथ
साथ न दे पग तो रहे, कैसे उन्नत माथ?
रह मस्ती में मस्त मन, कभी न होगा पस्त
तज न दस्तकारी मनुज, दो-दो पाकर दस्त
१२-५-२०२०
एक दोहा
जब चाहा संवाद हो, तब हो गया विवाद
निर्विवाद में भी मिला, हमको छिपा विवाद.
***
मुक्तक:
.
कलकल बहते निर्झर गाते
पंछी कलरव गान सुनाते गान
मेरा भारत अनुपम अतुलित
लेने जन्म देवता आते
.
ऊषा-सूरज भोर उगाते
दिन सपने साकार कराते
सतरंगी संध्या मन मोहे
चंदा-तारे स्वप्न सजाते
.
एक साथ मिल बढ़ते जाते
गिरि-शिखरों पर चढ़ते जाते
सागर की गहराई नापें
आसमान पर उड़ मुस्काते
.
द्वार-द्वार अल्पना सजाते
रांगोली के रंग मन भाते
चौक पूरते करते पूजा
हर को हर दिन भजन सुनाते
.
शब्द-ब्रम्ह को शीश झुकाते
राष्ट्रदेव पर बलि-बलि जाते
धरती माँ की गोदी खेले
रेवा माँ में डूब नहाते
***
मुक्तिका:
*
चाह के चलन तो भ्रमर से हैं
श्वास औ' आस के समर से हैं
आपको समय की खबर ही नहीं
हमको पल भी हुए पहर से हैं
आपके रूप पे फ़िदा दुनिया
हम तो मन में बसे, नजर से हैं
मौन हैं आप, बोलते हैं नयन
मन्दिरों में बजे गजर से हैं
प्यार में हार हमें जीत हुई
आपके धार में लहर से हैं
भाते नाते नहीं हमें किंचित
प्यार के शत्रु हैं, कहर से हैं
गाँव सा दिल हमारा ले भी लो
क्या हुआ आप गर शहर से हैं.
***
***
बाल गीत
देश हित :
.
भारती के गीत गाना चाहिए
देश हित मस्तक कटाना चाहिए
.
मातृ भू भाषा जननि को कर नमन
गौ नदी हैं मातृ सम बिसरा न मन
प्रकृति मैया को न मैला कर कभी
शारदा माँ के चरण पर धर सुमन
लक्ष्मी माँ उसे ही मनुहारती
शक्ति माँ की जो उतारे आरती
स्वर्ग इस भू पर बसाना चाहिए
भारती के गीत गाना चाहिए
देश हित मस्तक कटाना चाहिए
.
प्यार माँ करती है हर संतान से
शीश उठता हर्ष सुख सम्मान से
अश्रु बरबस नयन में आते झलक
सुत शहीदों के अमर बलिदान से
शहादत है प्राण पूजा जो करें
वे अमरता का सनातन पथ वरें
शहीदों-प्रति सर झुकाना चाहिए
भारती के गीत गाना चाहिए
देश हित मस्तक कटाना चाहिए
.
देश-रक्षा हर मनुज का धर्म है
देश सेवा से न बढ़कर कर्म है
कहा गीता, बाइबिल, कुरआन ने
देश सेवा जिन्दगी का मर्म है
जब जहाँ जितना बने उतना करें
देश-रक्षा हित मरण भी हँस वरें
जियें जब तक मुस्कुराना चाहिए
भारती के गीत गाना चाहिए
देश हित मस्तक कटाना चाहिए
१२-५-२०१५
***
छंद सलिला:
निश्चल छंद
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १६-७, चरणांत गुरु लघु (तगण, जगण)
लक्षण छंद:
कर सोलह सिंगार, केकसी / पाने जीत
सात सुरों को साध, सुनाये / मोहक गीत
निश्चल ऋषि तप छोड़, ऱूप पर / रीझे आप
संत आसुरी मिलन, पुण्य कम / ज्यादा पाप
उदाहरण:
१. अक्षर-अक्षर जोड़ शब्द हो / लय मिल छंद
अलंकार रस बिम्ब भाव मिल / दें आनंद
काव्य सारगर्भित पाठक को / मोहे खूब
वक्ता-श्रोता कह-सुन पाते / सुख में डूब
२. माँ को करिए नमन, रही माँ / पूज्य सदैव
मरुथल में आँचल की छैंया / बगिया दैव
पाने माँ की गोद तरसते / खुद भगवान
एक दिवस क्या, कर जीवन भर / माँ का गान
३. मलिन हवा-पानी, धरती पर / नाचे मौत
शोर प्रदूषण अमन-चैन हर / जीवन-सौत
सर्वाधिक घातक चारित्रिक / पतन न भूल
स्वार्थ-द्वेष जीवन-बगिया में / चुभते शूल
१२-५-२०१४
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
***
नवगीत
कब होंगे आज़ाद???...
*
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
गए विदेशी पर देशी
अंग्रेज कर रहे शासन
भाषण देतीं सरकारें पर दे
न सकीं हैं राशन
मंत्री से संतरी तक कुटिल
कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
नेता-अफसर दुर्योधन हैं,
जज-वकील धृतराष्ट्र
धमकी देता सकल राष्ट्र
को खुले आम महाराष्ट्र
आँख दिखाते सभी
पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होगे आजाद?
खाप और फतवे हैं अपने
मेल-जोल में रोड़ा
भष्टाचारी चौराहे पर खाए
न जब तक कोड़ा
तब तक वीर शहीदों के
हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
पनघट फिर आबाद हो
सकें, चौपालें जीवंत
अमराई में कोयल कूके,
काग न हो श्रीमंत
बौरा-गौरा साथ कर सकें
नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
रीति-नीति, आचार-विचारों
भाषा का हो ज्ञान
समझ बढ़े तो सीखें
रुचिकर धर्म प्रीति
विज्ञान
सुर न असुर, हम आदम
यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
१२-५-२०११
***

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