लद्दाख 1. देवेश सिसोदिया
राज्य समन्वयक(लद्दाख)
हाथरस (उत्तर प्रदेश)
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वर्ग 1 जनसांख्यिकी
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1-राज्य की उत्पत्ति,स्थापना,आधार
2-राजधानी
3-जनसंख्या
4-आर्थिक स्थिति
5-शिक्षा का स्तर
6-धर्म
7-मंडल तथा जिले
8-नगर तथा कस्बे आदि-आदि
*दोहा*--
*सन आठ सौ ब्यालीस में,उदय हुआ यह राज्य*
*लद्दाखी नृपवंश ने, बना लिया साम्राज्य*
*चोपाई*
तीन लाख आबादी वाला
सुंदरता में सबसे आला
मुझको प्यारा तुमको प्यारा
सारे जग में सबसे न्यारा
भारत माँ की आँख का तारा
चार-पाँच है इसका पारा
बहुत मनोरम चित्रण इसका
देख लेह मन हर्षित सबका
घुमक्कड़ी लोगों की भूमी
साधु संतों ने भी चूमी
काराकोरम और हिमालय
पर्वत दोनों इसके आलय
कारगिल की प्रसिद्ध लड़ाई
कठिन बहुत है इसकी चढ़ाई
मौसम रहता बहुत सुहाना
स्थापन है बहुत पुराना
*दोहा-*
तिब्बती साम्राज्य का विघटन होता देख
सदी आठवीं में बना राज्य अनोखा एक
*चोपाई*-
सिंधु नदी ही कृपासिंधु है
कृषि सिंचन का मुख्य बिंदु है
सिंधु नदी की अविरल धारा
देती सबको ही है सहारा
मुकुट सजाए भारत माता
आन-वान से इसका नाता
रक्षा करके प्राण बचाता
सबके मन को सुख पहुँचाता
कुछ तो रहते मुस्लिम भाई
बौद्ध धर्म के कुछ अनुयाई
मिल-जुल कर सब हाथ बटाते
शत्रु नाश का पाठ पढ़ाते
कठिन बहुत जलवायु इसकी
सुंदरता फिर से है चमकी
रोज रोज सैलानी आते
घूमघाम कर घर को जाते
शिक्षा और हुनर में तेजी
लड़ने को सेना है भेजी
निन्यानवे सन की लड़ाई
कारगिल नाम प्रसिद्धि पाई
*दोहा*-
बौद्ध धर्म ने जब लिए अपने पाँव पसार
सुन उपदेश गुरुकंठ से समझ गए सुख सार
*चोपाई-*
नियंत्रित है इसकी जनसंख्या
बहुत सुहानी होती संध्या
क्षेत्रफल में बहुत बड़ा है
शत्रु सम्मुख तना खड़ा है
सब ने बौद्ध धर्म अपनाया
सबसे ऊंचा स्तूप बनाया
मंडल एक,दो जिले बनाए
राजधानी से लेह सजाए
जब जब शत्रु ने ललकारा
सिंघनाद कर उसे भगाया
लद्दाखी सैनिक जब हारा
मातृभूमि पर तन मन वारा
कारगिल की पर्वत मालाएँ
शत्रु नाश करती बालाएँ
नगर नगर में रौनक लगती
लोगों की आँखों में बसती
सुंदरता की नहीं है शानी
लेह बनी इसकी रजधानी
कृषि पर आधारित है जीवन
जड़ी बूटियाँ और संजीवन
पशुपालन में खच्चर भाता
दूध दही दे गैया माता
बोझा ढोकर काम चलाते
अतिथि देवता सम अपनाते
*दोहा--*
अठरह सौ चौबीस, में हेतु डोगरा वंश ।
जोरावर ने जीत लिया, झेल शत्रु का दंश ।
*चोपाई-*
ध्वज डोगरा वंश फहराया
राजा रणजीत नाम कहाया
जोरावर उसका सेनानी
याद दिलाए अरि को नानी
एक हुई कश्मीरी घाटी
लेह और कश्मीर की माटी
बहुत समय तक शासन कीन्हा
सुख समृद्धि कबहुँ नही दीन्हा
प्रदेश निजी बनाना चाहा
अधिकार स्वायित्व का मांगा
आतंक साथ नहीं गुजारा
हमको अब लद्दाख है प्यारा
पृथक राज्य का बिगुल बजाया
नही कश्मीरी शासन भाया
शांतिदूत के सभी पुजारी
स्वायित्व बिना सभी दुखारी
चीनी तिब्बत अत्याचारी
लद्दाख की बड़ी लाचारी
स्वयित्व का सपना देखा
निर्धारित हो सीमा रेखा
*दोहा-*
दो हजार उन्नीस में, दिया केंद्र ने साथ।
कानून बनाकर ले लिया, शासन अपने हाथ।
*चौपाई-*
केंद्र शासित राज्य बनाया
प्रशासनिक अधिकार जमाया
राज्यपाल के हाथों सौंपा
जनसेवा का स्वर्णिम मौका
हथकरघा का मान बढ़ाने
शासन साधन लगा जुटाने
हस्तशिल्प है कला निराली
कौशल दिखलाने में आली
दमिश्क ,गुलाब, चमेली ,गेंदा
शांत रखें तन मन की मैदा
मँहगे मँहगे फल लगते हैं
बहुत परिश्रम से उगते हैं
हुआ खुशहाल राज्य लद्दाख
फूली-फली कली सज शाख
ज्ञान बिना मुश्किल लिख पाना
लिखा वही जो कुछ है जाना
नहीं किसी से करता समता
घर घर में है माया ममता
कर लद्दाख नमन स्वीकार
पूरा होंगे स्वप्न हजार
नमन मंच 🙏🌹🙏
विषय -- कला संस्कृति साहित्य
वर्ग---- 2
🙏🌹
*दोहा --- जम्मू की प्राची दिशा , ऊँचा एक पठार ।*
*हम लद्दाख कहें इसे , ईश्वर का उपहार ।।*
चौपाई---
जम्मू प्राची का उजियारा ।
राज्य लद्दाख सबसे प्यारा ।।
केंद्र शासित प्रदेश कहाता ।
रिपु देशों को यही दबाता ।।
काराकोरम उत्तर जानो ।
खड़ा हिमालय दक्षिण मानो ।।
क्षेत्रफलों में है बलशाली ।
कम आबादी इसकी आली ।।
सीमावर्ती क्षेत्र यही है ।
भूतल कृषि के योग्य नहीं है ।।
बहुत कठिन लोगों का जीवन ।
हँसी खुशी से करते यापन ।।
सीधे-साधे लोग यहाँ पर ।
धर्म भावना दिखे जहाँ पर ।।
नहीं झगड़ते आपस में ये ।
प्रेम भाव से रहते हैं ये ।।
लामाओं की यह है धरती ।
सज्जनता है उर में बसती ।।
बौद्ध धर्म के सभी उपासक ।
मधुरिम वाणी है सुखकारक ।।
*सशक्त नैतिक मूल्य हों , सदा रहे ये भान ।*
*कला साहित्य सभ्यता , बने राष्ट्र पहचान ।।*
चौपाई----
शांत प्रकृति के लोग यहाँ के ।
प्रेम करें हैं खूब जहाँ से ।।
भाई-चारा रग में है बसता ।
नेहिल भाव नित-नित है बढ़ता ।।
आर्य सभ्यता से है नाता ।
बौद्ध धर्म के नियम बताता । ।
तिब्बत शैली को अपनाते ।
आपस में सब हाँथ बँटाते ।।
प्रथा महोत्सव की अलबेली ।
सदी पुरानी जीवन शैली ।।
एक पक्ष तक उत्सव चलता ।
संस्कृति से है नाता जुड़ता ।।
लोग विश्व भर से हैं आते ।
जनजीवन से वे जुड़ जते ।।
आतिथ्य भाव बड़ा निराला ।
सुखमय अहसासों की माला ।।
बौद्ध यहाँ के मूल निवासी ।
छलविहीन होते सुख रासी।।
सहज भाव के लोग सभी जन ।
करते अपना तन मन अर्पन।।
*चंद्रभूमि लद्दाख को , कहते हैं सब लोग ।*
*जय-जय धर्म की हो रही ,सकल मिटे हैं रोग ।।*
सीधे सच्चे लोग यहाँ पर ।
धर्म भावना बसती अंतर ।।
स्तूप बने हैं जगह-जगह पर ।
गिनती करना अति है दुष्कर ।।
लगे प्रार्थना चक्र सभी में ।
प्रभु का सुमिरन चलता उर में ।।
सच्चे हृदय से जो घुमाता ।
पाप सकल उसका कट जाता ।।
लद्दाखी है जन की भाषा ।
पूरी होती मन अभिलाषा ।।
भोंटी भी है इसको कहते ।
प्रेम भाव से सब मिल रहते ।।
फूलों की यह घाटी सुन्दर।
हेमिस उत्सव लगता प्रियकर ।।
गीत संगीत गुंजित होता ।
लोक नृत्य का परिचय बोता ।।
कुंभ पर्व है यह कहलाता ।
लोगों का जमघट लग जाता ।।
नृत्य मुखौटा खेला जाता ।
सबके मन को यह है भाता ।।
*अजब गजब के भेद से , भरा हुआ लद्दाख ।*
*वीराने से क्षेत्र हैं , हिम से ढकती शाख ।।*
आर्य नस्ल जनजाति यहाँ पर ।
करते हैं शोध अध्ययन कर ।।
संगीत कला से इनकी जुड़ते ।
जीवनशैली पर हैं मुड़ते ।।
पोलो ट्रैकिंग के क्या कहने ।
तीरंदाजी जैसी बहनें।
सैलानी को हैं खूब लुभाती ।
दें आनन्द उर में समाती ।।
हर माह त्योहार हैं आते ।
मन में नई उमंग जगाते ।।
वैर भावना को भूल सभी जन ।
प्रेम से करते हैं आलिंगन
।।
नवल वर्ष में लोसर होता ।
यह पर्व नित खुशी संजोता ।।
एक पक्ष यह चलता है ।
पुरखों को नित भजता है ।।
खान पान है अजब निराला।
मक्खन चाय स्वाद है आला ।।
याक दूध से है ये बनती ।
रंग गुलाबी में है रंगती ।।
भाँति-भाँति के मिलते व्यंजन।
टिग्मो थुक्पा हैं प्रसिद्ध अन्न ।।
मोमोज कई सब्जियों वाला।
मोकथुक बने विविध मसाला ।।
-- स्वरचित एवं मौलिक रचना
✍🏻 *अर्चना तिवारी अभिलाषा*
*104ए/271*
*रामबाग*
*कानपुर।*
वर्ग - 3 - उपलब्धियां/ कार्य
***********************
श्रम करते नित लोग हैं, मुख रहती मुस्कान ।
सकल जगत में बढ़ा, है, लद्दाखी का मान ।।
मेहनत करके नाम कमाया ।
राज्य का सम्मान बढ़ाया।।
विकास की जब पेंग बढ़ाई ।
सूखी धरती भी मुस्काई ।।
खेती की तकनीकें सीखीं ।
जैविक अरु सूखी भी देखीं ।।
बीज उत्पादन के थे मानक ।
जिनसे होती धन की आवक ।।
सोलर ग्रीन हाउस बनाया ।
सारे मानक खरे रखाया ।।
ड्रिप स्प्रिंकलर नयी प्रणाली ।
जल बर्बाद न होता आली ।।
अधिक शीत से बच लें फसलें ।
धरतीगत गोदामों को टच लें ।।
फसल खराब न होने पाती ।
सरकारें सबको समझाती ।।
फौजी सीमा पर जब जाते ।
उनका खाना ये पहुँचाते ।।
भूखा कभी न इनको रखते ।
सब दिन सेवा इनकी करते ।।
शीत शुष्क लदाख यह, लगता चाँदी गोट।
लोग उगाते हैं यहाँ, भिन्न- भिन्न अखरोट ।
विविध जाति के फल उपजाते ।
सीयन बड को भी अपनाते ।।
तरह-तरह से सेब लगाते ।
चेरी , सीबक थॉर्न उगाते ।।
हर्बल पेय पदार्थ बनाया ।
विटामिन ए बी युत बताया।।
तनाव रोधी अद्भुत फल है ।
लाभ उठाता सैनिक दल है ।।
एफ एल आर पंजीकृत करके ।
एफ पी ओ उपक्रम सुधर के ।।
मिला जुला सब काम कराते ।
राज काज से लाभ उठाते ।।
औषधीय पौधे लगवाये।
गुणवत्ता विकसित करवाये ।।
लाहौल स्पीति को तुम जानो ।
इनका लोहा सब जन मानो ।।
बायोटेक्नोलॉजी विकसित ।
बहु क्षमतावान अपरिमित ।।
नन्हा सा यह राज्य कहाया ।
परचम जग में अब लहराया ।।
केवल खेती में नहीं, क्षमता हुई अपार।
भाँति भाँति के काम में, उपक्रम हैं उपहार ।।
मुर्गी पालन काम बढ़ाया ।
हर्षित हो जन जन मुस्काया ।।
रूखी ठंडी जो घबराया ।
तन का यह आहार बनाया ।।
डेयरी हेतु गायें पालीं ।
भेड़ें रखकर ऊन निकाली ।।
सरकारी सुविधा लाभ उठायी ।
लद्दाखी जनता मुस्कायी ।।
घोड़ा संतति का बढ़ जाना।
खच्चर टट्टू का भी आना ।।
पर्यटन को मिले बढ़ावा ।
लेह घुमाना पक्का दावा ।।
कृषि वानिकी नियम बनाये ।
पूरे राज्य में लाभ कराये ।।
हिम बूटी पेटेंट कराया ।
सीबक से फिर जैम बनाया ।।
शीत शुष्क प्रदेश बड़भागी ।
सुंदर मोहक अरु मनलागी ।।
सकल विश्व में डंक बजाया ।
सरल सहज मनु मन भाया ।।
रचनाकार
अन्नपूर्णा बाजपेयी अंजू
कानपुर
वर्ग 4 (इतिहास)
दोहा -
शिलालेख जो भी मिले,उनसे मिलता ज्ञान।
युग में नवपाषाण के,इसका हुआ निर्माण।।
चौपाइयां-
प्रथम शताब्दी का है किस्सा ।
बना कुषाण राज का हिस्सा ।।
सदी आठवीं ऐसी आई ।
तिब्बत चीनी हुई लड़ाई ।।
चीन व तिब्बत बारी- बारी ।
बनते थे इसके अधिकारी ।।
विघटन तिब्बत का हो पाया ।
न्यिमागोन ने था कब्जाया ।।
सभी वंश करके विस्थापित ।
वंश लद्दाखी किया स्थापित ।।
तिब्बतियों का हुआ आगमन ।
बौद्ध धर्म ने किया पदार्पण ।।
भाषा सही अज्ञात अभी तक ।
इंडो - यूरोपियन का है शक ।।
तेरह से सोलवीं सदी में ।
था तिब्बती मार्गदर्शन में ।।
बात करें सत्रवीं सदी की ।
बन गए शत्रु राज पड़ोसी ।।
बौद्ध धर्म था सिर्फ जहां पर ।
आया मुस्लिम धर्म वहां पर ।।
दोहा -
मुस्लिम हमलों से हुआ,खंड खंड लद्दाख।
तब राजा ल्हाचेन ने,पुनः बनाई साख।।
चौपाइयां-
था मुस्लिम हमलों से खंडित
राजा ने कर लिया संगठित
एक नया फिर वंश चलाया
नामग्याल था नाम बताया
दुश्मन ने आतंक मचाया
कलाकृति को तोड़ गिराया
फिर से हुआ निर्माण सभी का
पुनः हो गया सब कुछ नीका
यद्यपि हार गया मुगलों से
पर आजाद रहा बंधों से
शेरखान को कर् था चुकाया
बहुत समय शांति से बिताया
सदी का आखिर ऐसा आया
तिब्बत से भूटान लड़ाया
साथ हुए लदाख भूटानी
तभी रार तिब्बत ने ठानी
ये घटना जब शुरू हुई थी
सन् सोलह सौ उन्यासी थी
सन् सोलह सौ चौरासी में
निबटी तिंगमोस बाजी में
दोहा -
तिंगमोस की संधि से,हुआ युद्ध का अंत।
सुखी हुई सारी प्रजा,हुआ हर्ष अत्यन्त।।
चौपाइयां -
सन् अट्ठारह सौ चौतिस में ।
बोला हमला जोरावर ने ।।
मान डोगरा का बढ़वाया ।
तब गुलाब ने कंठ लगाया ।।
अठरा सौ व्यालिस का किस्सा ।
बना लिया जम्मू का हिस्सा ।।
यूरोप की बढ़ी प्रभुताई ।
सदा हुई लद्दाख बड़ाई ।।
सन् उन्निस सौ सैंतालिस में ।
हुआ विभाजित भारत जिसमें ।।
यह सुंदर अवसर भी आया ।
भारत में यह गया मिलाया ।।
उन्नीस उन्यासी की घटना ।
जब लद्दाख को पड़ा बटना ।।
दो भागों में गया बटाया ।
लेह कारगिल नाम कहाया ।।
दो हजार उन्नीस का मौका ।
जब था ये सारा जग चौंका ।।
नौवां केंद्र के शासन वाला ।
बना क्षेत्र लद्दाख निराला ।।
दोहा -
बसा गोद गिरिराज की,वहैं खूबियाँ अनेक ।
मेले पर्व कई यहाँ, आप लीजिए देख।।
चौपाइयाँ
पहला है लादार्चा मेला ।
दूजा है पौरी का खेला ।।
दोनों अगस्त में हैं आते ।
सब मिलकर आनंद मनाते ।।
शिशु मेला भी एक है नामा ।
पहन मुखौटे आते लामा ।।
एक पर्व दिवाली जैसा ।
नाम खोगला, हल्डा कैसा ।।
अति विशेष फागली का उत्सव ।
तेल के दीपक जला रहे सब ।।
पिछले वर्ष हुआ जहाँ बेटा ।
गोची पर्व वहाँ पर देखा ।।
यह विशाल मेला दुनिया का ।
उत्सव है यह बौद्ध धर्म का ।।
द्रुपका पंथ के अनुयायी जो ।
वही मनाते इस उत्सव को ।।
नाम नरोपा कहलाता है ।
बारह वर्ष बाद आता है ।।
बारह वर्ष बाद है आता ।
अतः कुंभ भी है कहलाता ।।
मीनेश चौहान w/o अरुण कुमार सिंह
ग्राम - राई,पोस्ट - खंडॉली
जिला - फर्रुखाबाद(उत्तर प्रदेश)
पिन कोड - 209621
लद्दाख - वर्ग 5 (प्राकृतिक संरचना)
खनिज
03/07/2021
केंद्र प्रशासित राज्य जो, पड़ा नाम लद्दाख।
अप्रतिम सौंदर्य जिसका, बर्फ भरी हर शाख।।1।।
छवि लगे लद्दाख की प्यारी।
सुषमा उसकी न्यारी-न्यारी।।
लोग वहाँ के लगते प्यारे।
बर्फ ढँके पर्वत हैं सारे।।
सौम्य रूप पावन अति लागे।
धवल केश कपास के धागे।।
कुदरत का यह शुभ्र नजारा।
आँखों को लगता है प्यारा।।
पहले था कश्मीरी हिस्सा।
विलग हुआ है ताजा किस्सा।।
खुश हो जाते हैं सैलानी।
देख-देख मौसम बर्फानी।।
पश्मीना ऊनें मिलती हैं।
सुंदर-सी शालें बनती हैं।।
लेह, कारगिल दोउ जिले हैं।
हिम के गिरि पर फूल खिले हैं।।
विधि कार्य कश्मीर में होते।
पर झगड़े भी कम ही होते।।
पर्वत से हैं झरने गिरते।
अधिक ठंड से वे भी जमते।।
हाड़ काँपती शीत में, कार्य करें सब लोग।
ईश्वर की इन पर कृपा, होते कम ही रोग।।2।।
हिम तेंदुए वहाँ हैं मिलते।
पशु में चीरू, याक विचरते।।
भेड़ नयान भरल बहुतेरे।
जमे बर्फ पर करते फेरे।।
पशु-बालों से ऊन बनाते।
जम्मू में भी भेजे जाते।।
जहाँ गर्म शाॅलें हैं बनतीं।
फिर वो दुनिया भर में बिकती।।
पश्मीना की उन्नत किस्में।
रेशम-सी चिकनाई जिसमें।।
कीमत भी होती है ज्यादा।
पर गर्मी का पक्का वादा।।
है मैग्नेटिक वहाँ पहाड़ी।
स्वयं एव खिंच जाती गाड़ी।।
नदियाँ मुख्य सिंधु जास्कर हैं।
हिमकण बनते जल जमकर हैं।।
रहित वनस्पति क्षेत्र जहाँ के।
कुछ फल के भी वृक्ष वहाँ पे।।
सेब संग अखरोट खुबानी।
मिले स्वाद भी खूब बखानी।।
पक्षी रंग-बिरंग के, करते वहाँ प्रवास।
उड़ते राॅबिन प्लंबियस, मनहर दिखे अकास।।3।।
बारह मास शीत रहती है।
जमी नदी कम ही बहती है।।
जीवन-यापन होता मुश्किल।
पर्यटन जीविका में शामिल।।
खेती योग्य जमीन नहीं है।
कोई सिंचन-स्त्रोत नहीं है।।
पशु-पालन ही पेशा होता।
याक सरिस वाहन बन ढोता।।
दूध- चीज़ पनीर भोजन का।
जीवन सादा है जन-जन का।।
भोले-भाले लोग वहाँ हैं।
होता अधिक न द्वंद्व जहाँ है।।
अन्य नदियाँ सिंधु में मिलतीं।
जांस्कर, डोडा मिलकर बहतीं।।
हिम नदियों में तरते दिखते।
दृश्य बड़े ये अद्भुत लगते।।
मानों बिछी बर्फ की चादर।
उतरा हुआ भूमि पर बादर।।
दिखती धरती स्वर्ग समाना।
मनु भी त्यागे निज अभिमाना।।
पुष्प एक विशेष यहाँ, सोलो उसका नाम।
रोडिओला भी कहते, अद्भुत उसका काम।।4।।
बढ़ती उम्र असर कम करता।
गुण औषध के तन में लगता।।
आक्सीजन उपलब्ध कराता।
सब्जी बन भोजन में आता।।
डायबिटिज नियंत्रित करता।
संतुलित मस्तिष्क को रखता।।
खाली पेट न सेवन करना।
शयन पूर्व भी इसे न चखना।।
पर्यटन-स्थल अनेक यहाँ पर।
आकर्षक मठ जगह-जगह पर।।
झीलें भी मन को हर लेतीं।
नयी ताजगी से भर देतीं।।
पैंगोंग को सभी हैं जानें।
आए निर्माता फिल्माने।।
अति प्रसिद्ध वह फिल्म हुआ था।
जब अद्भुत यह सीन लिया था।।
झील त्सोकर और मोरीरी।
भीड़ यहाँ होती बहुतेरी।।
देश भारत चीन में आधा।
झीलें कभी न बनतीं बाधा।।
———----------———
— स्वरचित
गीता चौबे गूँज
राँची झारखंड
वर्ग 6 लद्दाख वन्दना चौधरी
************************
भारत मां का भाल है ,अनुपम इसकी साख ।
शासित केंद्र राज्य है ,ये अपना लद्दाख।।१।।
भाल मुकुट यह भारत माँ का,
भूमि लेह लद्दाख पताका।
वर्ष छियासठ लड़ी लड़ाई,
जाकर तभी साख है पाई।
शुष्क ऋतु और धरा कठोरा,
पूरे वर्ष शीत का घेरा ।
ताप शून्य का हरदम फेरा,
प्राणवायु का कम है डेरा।।
उत्तर पश्चिम वास हिमाला,
है हर तरफ चोटी विशाला।
तीन इंच है वार्षिक वृष्टि ,
देखो कितनी सुंदर सृष्टि।।
स्वर्ग समान दृश्य है देखा ,
सिंधु यहां की जीवन रेखा।
कारगिल में शौर्य की माटी ,
जो है बसा सुरू की घाटी।।
स्कार्दू है शीत राजधानी ,
लेह ग्रीष्म में करे प्रधानी।
चारों तरफ पर्वती माला ,
सुंदर प्रकृति नशा ज्यौ हाला।।
सीमा इसकी नाप लो ,पूरब पश्चिम द्वार ।
अक्साई अब चीन लो, ये भारत उद्गार ।।२।।
गिलगित और चीन अक्साई ,
चीन ,पाक ने मुँह की खाई।
नहीं चलेगा इनका धोखा,
निश्चित सब भारत का होगा।।
पूरब में तिब्बत है छाया ,
पश्चिम दूर पाक पसराया।
उत्तर काराकोरम दर्रा ,
सुंदर दक्खिन जर्रा जर्रा।।
भारत का यह शौर्य सितारा,
सुंदरता से शोभित सारा।
विरल यहाँ लोगों का डेरा ,
चारों तरफ पहाड़ी घेरा।।
एल ए सी नियम था तोड़ा,
भारत ने चीनी को फोड़ा।
सुन ले चुंदी आंखों वाले,
काहे तुच्छ सोच तू पाले।।
मत ले भारत से तू पंगा ,
हो जाएगा अब तू नंगा ।
अब ना भारत बासठ वाला ,
देगा चीर पाँव जो डाला।।
खनिज ,श्रेणियों से भरा, अनुपम सुंदर सर्व,
कितनी सुंदर है धरा ,कर लो इस पर गर्व।।३।।
सुंदर एक लेह रजधानी ,
जिसकी है हर छठा सुहानी।
जास्कर पर्वत श्रेणी बीचा,
धरती माँ ने इसको सींचा।।
जास्कर पर्वत श्रेणी फैली,
धरती नहीं तनिक भी मैली ।
सिंधू से श्रेणी विस्तारा ,
श्योक दक्षिणा पाँव पसारा।।
सबसे ऊँची राकापोशी ,
तीव्र ढाल वाली यह चोटी।
काराकोरम छत दुनिया की,
कई चोटियाँ है शोभा की।।
जौ,कुटु, शलगम होती खेती,
प्रकृति यहाँ की यह सब देती।
सन् सत्तर से हुआ विकासा ,
साग ,सब्जियाँ अब चौमासा।।
खनिज संपदा को मत खोना,
यूरेनियम, ग्रेनाइट, सोना।
धातु ये सभी हैं अनमोल,
संरक्षण में रखें न झोल।।
रेतीली माटी मृदा ,बहुरंगी चट्टान।
सीबकथोर्न पौध सदा, रोके भूमि कटान।।४।।
बंजर भूमि मृदा है सूखी,
वन सौंदर्य से प्रकृति रूखी।
कठिन परिस्थिति में उग आता,
सीबकथोर्न झाड़ कहलाता ।।
वृक्ष यह आकार में बोना,
फल इसका लद्दाखी सोना ।
लेह और है वंडर बेरी,
खाने में अब नाकर देरी।।
फल रंगों में बड़े सुहाते,
जामुननुमा सभी फल आते।
पोषक तत्वों में है उत्तम,
सभी फलों में यह सर्वोत्तम।।
लिकिर गाँव लद्दाख में आता,
मिट्टी के जो पात्र बनाता।
सब कुम्हार यहीं से आते ,
कुशल शिल्प से जाने जाते।।
वर्षा यहाँ बर्फ की होती,
जब गिरती लगती सम मोती।
शीतल ,शुष्क हवा भी बहती,
कठिन यहाँ जीवन है कहती।।
स्वरचित मौलिक रचना
वन्दना चौधरी
ए.जी ऑफिस
ऑडिट भवन पर्वरी
पणजी गोवा
403521
*प्रदेश -लद्दाख*वर्ग -7
*प्रमुख व्यक्तित्व*
डॉ उपेंद्र झा
हाथरस( उ ,.प्र)
*दोहा-*
*तिब्बत सीमा पूर्व की, उत्तर में है चीन।*
*राज्य एक सुन्दर बसे, जो रहे केंद्र आधीन ।।*
*चौपाई-*
उत्तर जिसके चीन विराजत,
पूरव में सीमा है तिब्बत।
सिंधु नदी कम ही बह पाती
ज्यादा समय बर्फ जम जाती।
लेह कारगिल दो ही जिले हैं,
जैसे कमल गुलाब खिले हैं।
भाषा अपना रंग जमाती,
तिबती हिंदी और लद्दाखी।
चित्रकारिता अजब निराली,
भित्तिचित्र पर उकेर डाली।
*दोहा-*
*क्षेत्रफल में सबसे बड़ा, सुन्दर एक प्रदेश।*
*केंद्र करे शासन यहाँ, नहीं कोई लवलेश।।*
*चौपाई-*
सबसे बड़ा क्षेत्रफल जिसका,
सुंदरता में जोड़ न इसका।
घुमक्कड़ी जनसँख्या भारी,
मेहनतकश सारे नर-नारी।
पंद्रह दिन त्यौहार मनावें,
दुनिया देख देख हर्षावे।
झील और चट्टानें सोहें,
पर्यटकों का झट मन मोहें।
पोलो मैच संग तीरंदाजी,
सबसे पहले मारे बाजी।
*दोहा-*
*पोलो मैच प्रसिद्ध है, तीरंदाजी संग।*
*क्रीड़ा कौशल देख कर, सब रह जाते दंग।।*
*चौपाई-*
पूजा-पाठ में आगे रहते,
चन्द्रभूमि लद्दाख को कहते।
धर्मध्वजा की बात जो आए,
लद्दाख क्यों पीछे रह जाए।
अग्रिम रहते सब परिवारा,
धर्म हेतु नहीं करत विचारा।
भक्ति देख सब करत प्रनामा,
धर्मगुरु बन जाते लामा।
ल्हासा जाकर लेते दीक्षा,
होती है तब कठिन परीक्षा।
*दोहा-*
*ल्हासा में दीक्षा मिली, लामा हो तैयार।*
*धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर, करते धर्म प्रचार।।*
*चौपाई-*
पांगोंग झील बहे अति सुन्दर,
मन मोहे पर्यटक निरंतर।
घर घर बने शांति स्तूपा,
मंदिर सूक्ष्म कहाता प्रभु का।
माउंटेन बाइकिंग खेल रिझाए,
नजर हटाए हट नहीं पाए।
हुआ केंद्र शासित लद्दाख
उन्नति हुई बढ़ी है साख।
*दोहा-*
*उप राज्यपाल प्रदेश का, होता यहाँ प्रधान।*
*धर्म सभी हैं एक जुट, सबका मान समान।।*
*चौपाई-*
पूजा प्रार्थना चक्र कहाए
माने तंजर नाम रखाए।
नदी तैराकी नुवरा उत्सव,
पंद्रह दिन तक चले महोत्सव।
सुन्दर खेल होत घाटी में,
अद्भुत गंध है इस माटी में।
ग्यारह वर्ष की एक कुमारी,
पड़ गयी गीत ग़ज़ल पर भारी।
प्रसिद्ध हुई छोटी सी गायिका,
बन गयी वो गीतों की नायिका।
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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