दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु
A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
मंगलवार, 13 जुलाई 2021
मुक्तक
मुक्तक था सरोवर, रह गया पोखर महज क्यों आदमी? जटिल क्यों?, मिलता नहीं है अब सहज क्यों आदमी? काश हो तालाब शत-शत कमल शतदल खिल सकें- आदमी से गले मिलकर 'सलिल' खुश हो आदमी।। १३-७-२०२०
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