दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु
A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
रविवार, 30 मई 2021
मुक्तिका
मुक्तिका : संजीव 'सलिल' भंग हुआ हर सपना * भंग हुआ हर सपना, टूट गया हर नपना. माया जाल में उलझे भूले माला जपना.. तम में साथ न कोई किसे कहें हम अपना? पिंगल-छंद न जाने किन्तु चाहते छपना.. बर्तन बनने खातिर पड़ता माटी को तपना..
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