फागुनी कुंडलिया
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केसरिया किंशुक कुसुम, अँजुरी भर उल्लास।
फागुन फगुनाहट लिए, अधराधर पर हास।।
अधराधर पर हास, बाँह में बाँह समाए।
अंतर से अंतर कर, अंतर दूर मिलाए।।
कली-फूल तज द्वैत, वरें अद्वैत दे जिया।
अंजुरी भर उल्लास, कुसुम किंशुक केसरिया।।
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संजीव
११-३-२०१८
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