नवगीत
*
गुरु जी हैं लघुकथा
चेले जी उपन्यास
*
काया लघु
छाया का शतगुण विस्तार
कौन कहे
कल्पना का क्या आकार
सच से बच
गढ़ रहे कैसा संसार?
रास रचा
बोल रहे यह है सन्यास
गुरु जी हैं लघुकथा
चेले जी उपन्यास
*
पाने की
आशा में; खोते हैं प्राप्त
झूठे दुख
ओढ़ लिखें; रचनाएँ शाप्त
आलोचक
आपन मुँह; कहे हमीं आप्त
कांता से कांत भीत
भोगें संत्रास
गुरूजी हैं लघुकथा
चेले जी उपन्यास
*
स्यापा कर
झूठमूठ; कहते युग-सत्य
कथ्य गौड़
कहन मुख्य; करते दुष्कृत्य
पैसे द्
माँग-माँग मानित हों नित्य
शूर्पणखा
गर्वित कर; मोहक विन्यास
गुरु जी हैं लघुकथा
चेले जी उपन्यास
***
संवस
२६-२-२०१९
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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