नव प्रयोग
कुंडलिनी छंद
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लूट रहा है बाग, माली कलियाँ रौंदकर।
भाग रहे हैं सेठ, खुद ही डाका डालकर।।
खुद ही डाका डालकर, रपट सिखाते झूठ।
जंगल बेचे खा गए, शेष बचे हैं ठूँठ।।
कौए गर्दभ पुज रहे, कोयल होती हूट।
गौरैया को कर रहा, बाज अहिंसक शूट।।
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संजीव,
२३-११-२०१८
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