दोहा सलिला अनुभूति
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जो घटता सुन-देखकर, अच्छी-बुरी प्रतीति।
होती मन में वही है, मानव की अनुभूति ।।
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कर्म करें अनुभव मिले, क्या-किसका परिणाम।
कब अनुकूल हुआ समय, कब विधि होती वाम।।
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कर पढ़ छू चख देख सुन, गुनकर कर अनुमान।
अनुभव को अनुभव करें, हो अनुभूति अनाम।।
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ग्यान-कर्म दस इंद्रियाँ, मिल करतीं चैतन्य।
हो अनुभूति-प्रतीति तब, अनुभव सत्य अनन्य।।
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ग्यान-ध्यान से जो मिले, कौन कर सके व्यक्त।
गूँगे का गुड़ जानिए, रहता भले अव्यक्त।।
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ग्यान सूर्य को स्वार्थ का, राहु न ग्रस ले मीत।
केतु द्वेष का दूर हो, करें निरंतर लेख।।
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कामधेनु है ग्यान दे, मनचाहा परिणाम।
भला-बुरा जैसा करें, काम मिले अंजाम।।
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संजीव, २६-९-२०१८
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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