राजस्थानी दोहे -
मरवण रा दूहा/ दीनदयाल शर्मा
मखमल जेड़ी मोवणी, तिरछा-तिरछा नैण।
औलै छानै झांकिया, मरवण करसी सैण।।
औलै छानै झांकिया, मरवण करसी सैण।।
जाडी बंटली जेवड़ी, पींग बांध पुंगराय।
मरवण हिंडै मोद में, ऊभलियां मचकाय।।
मरवण हिंडै मोद में, ऊभलियां मचकाय।।
झीणी-झीणी कांचळी, घाघरियो घुमकाय।
आंगणियै में न्हांवती, मरवण घणी सुहाय।।
आंगणियै में न्हांवती, मरवण घणी सुहाय।।
मुळकै थारा होठिया, नैणां कैवै बात।
मरवण थारी ओढणी, तारां छाई रात।।
मरवण थारी ओढणी, तारां छाई रात।।
मरवण थारो कयौड़ो, टाळ सकै नां कोय।
मरतै दम तांईं पूरसी, टुकड़ा करद्यो दोय।।
मरतै दम तांईं पूरसी, टुकड़ा करद्यो दोय।।
फोटू थारी फूटरी, भीतर लई मंढाय।
मरवण हिड़दै मांडली, मरियां साथै जाय।।
मरवण हिड़दै मांडली, मरियां साथै जाय।।
गजगामिनी गोरड़ी, गोरा-गोरा गा'ल।
मरवण मळता मोकळौ, गैरौ घणौ गुलाल।।
मरवण मळता मोकळौ, गैरौ घणौ गुलाल।।
मरवण थूं मनभांवती, काळजियै री कोर।
सागौ थारौ सांतरौ, बंध्या पतंग ज्यू डोर।।
सागौ थारौ सांतरौ, बंध्या पतंग ज्यू डोर।।
क्या इस मॆं तेलुगु के पद्य और चित्रबन्ध पॊस्ट करनॆ का सुविधा है?
जवाब देंहटाएं