दोहा मुक्तिका
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कब क्या करना किसलिए, कहाँ सोच अंजाम।
किस विधि करना तय करें, हो निश्चित परिणाम।।
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किसने किससे क्या कहा, ध्यान न दे कर काम।
इसकी उससे मत लगा, भला करेंगे राम।।
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क्या पाया; क्या खो दिया, दिया-लिया क्या दाम?
जो इसमें उलझा रहा, उससे वामा वाम।।
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किया न होता अनकिया, मिले-मत मिले नाम।
करने का संतोष ही, कर्ता का ईनाम।।
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कह न किस दिवस सुबह हो, कब न हुई कह शाम।
बीती बातें यादकर, क्यों बैठा मृत थाम।।
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कौन उगा? यह देखकर, दुनिया करे प्रणाम।
कभी न लेती डूबते, सूरज का वह नाम।।
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कल रव हो; या शांति हो, रखे न किंचित काम।
कलकल कर रेवा कहे, रखो काम से काम।।
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11.6.2018, 7999559618
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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