श्री श्री का स्वागत करें, दसों दिशा कर होड़।
श्री श्री पर छिड़कें सलिल, मेघराज कर जोड़।।
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श्री श्री में सौहार्द्र है, मूर्तिमान जीवंत।
श्री श्री हैं सौहार्द्र में, रचे-बसे शुचि संत।।
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श्री श्री कहते समन्वय, सुख पाने का मंत्र।
श्री श्री करते संतुलन, इह-पर होते तंत्र।।
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श्री श्री मृदु मुस्कान का, मलहम रखते साथ।
श्री श्री मन से मन मिला, कहें मिला लो हाथ।।
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श्री श्री की वाणी मधुर, अमृत रस से सिक्त।
श्री श्री से मिल मिष्ठ हो, कटु भी रहे न तिक्त।।
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श्री श्री धारण श्वेत कर, देते शुचि संदेश।
श्री श्री कहते स्वच्छ रख, तन-मन-आत्मा देश।।
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श्री श्री पल-पल जी रहे, भक्ति-कर्ममय श्वास।।
श्री श्री भारत ही नहीं, विश्व-धरोहर खास।।
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श्री श्री भव से तारते, तरते श्रद्धावान।
श्री श्री आओ! पुकारते, सुन बनते इंसान।।
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श्री श्री को सुन, गुन सतत, अहंकार को भूल।
श्री श्री-दर्शन सुदर्शन, पा-कर मन हो फूल।।
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श्री श्री विश्व-विभूति हैं, सब सद्गुण की खान।
श्री श्री इस कलिकाल में, नर देहित भगवान।।
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श्री श्री सत्-शिव-सुंदरम, चिदानंद साक्षात।
श्री श्री पद-रज पा सलिल, जीवन बने प्रभात।।
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८.३.२०१८
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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