शिव को मिल दंडित करें,
जिनका रहा विचार।
नतमस्तक मांगें क्षमा,
वे निज भूल सुधार।।
*
लिंग काटकर फेंकने,
बढ़ा रहे थे हाथ।
जो वे ही पूजन करें,
झुका-नवाकर माथ।।
*
देहांगों तक ही रहे,
सीमित नर-पशु नाथ!
पशुपतिनाथ! पुकारते,
संत जोड़कर हाथ।।
*
कुंठित हुई वृषभ सदृश
मति, पाया अब ज्ञान।
वृषभनाथ! हर लीजिए,
सब मिथ्या अभिमान।।
*
ऋत से दूर न सत् सके,
ऋषि होकर पहचान।
ऋषभदेव! करिए कृपा,
हो हम सब मतिमान।।
*
लिंगराज! करिए क्षमा,
गूंजी करुण पुकार।
एकलिंग ने अभय दे,
विनय करी स्वीकार।।
*
शिवा भाव पा साध्वियां,
हुईं निशंक-अभीत।
निज त्रुटि खुद ही मानकर,
चाहें बनें पुनीत।।
*
श्रद्धापूर्वक नमन कर,
मन में ले विश्वास।
शिव-ऋषियों से मांगतीं,
दण्ड बिना भय-त्रास।।
*
उमा पार्वती अपर्णा,
काट मोह का पाश।
सत् की करा प्रतीति दें
आशा का आकाश।।
*
मन से मन मिल एक हो,
रहे न भिन्न, न दूर।
नेह-नर्मदा बह चली,
देह न थी नासूर।।
*
भोलेपन में भुलाकर,
पथ प्रवृत्ति का हीन।
मग निवृत्ति का गह हंसा,
संत समाज अदीन।।
***
१-२-२०१८, जबलपुर
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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