शिव मस्तक शोभित 'सलिल',
हुआ नर्मदा-धार।
धार रहे शिव, हो सके
सकल सृष्टि उद्धार।।
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पंचमुखी हो चतुर्मुख,
हुए भीत से पीत।
शिव श्यामल से गौर हो,
पाते-देते प्रीत।।
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विधि-हरि-हर की त्रयी मिल,
रच-रख-नाशे सृष्टि।
शक्ति-संतुलन की करी,
शिव ने विकसित दृष्टि।।
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नाभि कमल पर विधि रहें,
हरि की शैया शेष।
नभ-सागर शिव वास हो,
ओर न छोर अशेष।।
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आदि शक्ति शारद-रमा-
उमा करें सह-वास।
शक्तित्रयी हैं समन्वित,
किंचित भेद न त्रास।।
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अण्ड-पिण्ड शिव लिंग ही,
सकल सृष्टि का मूल।
शिवा जिलहरी चेतना,
है आधार न भूल।।
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देव-शक्तियां तीन हैं,
गुण प्रकृति के तीन।
श्रेष्ठ न कोई किसी से,
कोई न किंचित हीन।।
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२१.१.२०१८, जबलपुर
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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