शिव ने शक का सर्प ले,
किया सहज विश्वास।
कण्ठ सजाया, धन्यता
करे सर्प आभास।
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द्वैत तजें, अद्वैत वर,
तो रखिए विश्वास।
शिव-संदेश न भूलिए,
मिटे तभी संत्रास।।
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नारी पर श्रद्धा रखें,
वही जीवनाधार।
नर पर हो विश्वास तो,
जीवन सुख-आगार।।
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तीन मेखला तीन गुण,
सत्-शिव-सुंदर देख।
सत्-चित्-आनंद साध्य तब,
धर्म-मर्म कर लेख।।
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उदय-लय-विलय तीन ही,
क्रिया सृष्टि में व्याप्त।
लिंग-वेदिका पूजिए,
परम सत्य हो आप्त।।
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निराकार हो तरंगित,
बनता कण निर्भार।
भार गहे साकार हो,
चले सृष्टि-व्यापार।।
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काम-क्रोध सह लोभ हैं,
तीन दोष अनिवार्य।
संयम-नियम-अपरिग्रह,
हैं त्रिशूल स्वीकार्य।।
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आप-आपके-गैर में,
श्रेष्ठ न करते भेद।
हो त्रिनेत्र सम देखिए,
अंत न पाएं खेद।।
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त्रै विकार का संतुलन,
सकल सृष्टि-आधार।
निर्विकार ही मुक्त है,
सत्य क्रिया-व्यापार।।
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जब न सत्य हो साथ तो,
होता संग असत्य।
छलती कुमति कुतर्क रच,
कहे सुमति तज कृत्य।।
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नग्न सत्य को कर सके,
जो मन अंगीकार।
उसका तन न विवश ढहे,
हो शुचिता-आगार।।
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२७.१.२०१८, जबलपुर
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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