शिव निष्कल निर्मल सकल,
सजा कलानिधि माथ।
कलाकोकिला उमापति,
शिव पा कला सनाथ।।
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शिव पिंडी अणु-कणमयी
रूप न जहां विकार।
सिमटे तो हो शून्य ही,
फैल अनंत-अपार।।
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सृष्टि स्थिती संहार शिव,
तिरोभाव शिव आप।
अनुग्रह पंचम कर्म से,
शिव रहते जग-व्याप।।
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ब्रम्हा को छल-दण्ड दे,
कहा न पूजन-पात्र।
पछताए विधि, क्षमा पा,
यज्ञ-पूज्य हैं मात्र।।
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ब्रम्ह-शीश गल-माल कर,
मिटा दिया हर बैर।
भैरव भी शिव-मूर्ति हैं,
मांग रहा जग खैर।।
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असत-संग कर केतकी,
हर-पूजन से दूर।
शापित, सत्पथ वरण कर,
हरि पूजे, मद चूर।।
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'अउम' ॐ शिव-बीज जप,
नश्वर होंगे मुक्त।
मंत्र-जाप बिन ॐ के,
हो न सके फल-युक्त।।
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२३.१.२०१८, जबलपुर
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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