शिव ने विष पीकर किया,
त्रिभुवन का कल्याण.
सुर नर असुरों को मिला,
भव-बाधा से त्राण.
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ज़हर कंठ में रोककर,
नीलकंठ पा नाम.
अमर हो गए सदाशिव,
अग-जग करे प्रणाम.
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ज़हर-ज़हर को काटता,
नीलकंठ में नाग.
नाच-नाच फ़ुन्फ़कारता,
उगल-शांत कर आग.
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कुंडलिनी के चक्र हों,
जागृत अपने आप.
नाग कुंडली मारकर,
करता शिव-शिव जाप.
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विषधर विष तज शिव भजे,
पूजें सुर नर नित्य.
अमृत बाँटे शशि पुजे,
शिवा अनादि-अनित्य.
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नागपंचमी पर पुजे,
नित घर-घर में नाग.
विष-अमृत के मेल से,
जीवन में हो राग.
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23.12.2017
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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