शिवजी के दरबार में.
ऊँच न कोई नीच.
ह्रदय-बाग जल-भक्ति से,
कर्म-पौध नित सींच.
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नाग गले, शशि शीश पर,
नंदी भू-आसीन.
शिवा-सिंह से स्नेह पा,
हुए भक्ति में लीन.
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शशि अमृत का कोश है.
शशि सौंदर्य-निधान.
शिव-अनुकम्पा से बढा,
शशि का भव में मान.
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स्नेह पाल शशि से सलिल,
शिव देखें जा झाँक.
जगत्पिता की छवि तुरत,
मन मंदिर में आँक.
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शीश बचा शशि से, न वह
हो जाए आसीन.
धुनी रमाना पड़ेगी,
ले मसान में बीन.
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शिवा देख शशि-रूप को,
करें ईर्ष्या-मान.
'शिवा! पूर्ण शशि तवानन',
शिव बोले- 'तज मान'.
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शंभु-शीश शशि बसा, नभ
दीन, अँधेरी रात.
शुक्ल पक्ष नभ, कृष्ण शिव
रखें कहें जग-मात.
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21.12.17
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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